श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “शुभस्थ शीघ्रम…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 239 ☆ शुभस्थ शीघ्रम… ☆
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मौन मुखरित हो रहें हैं
शब्द के बोले बिना ।
भाव जैसे शून्य लगते
नैन के खोले बिना ।।
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धड़कने भी बात करतीं
आस अरु उम्मीद की ।
राह पर चलना सरल क्या
खाय हिचकोले बिना ।।
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प्रतिष्ठा का वस्त्र जीवन में कभी नहीं फटता, किन्तु वस्त्रों की बदौलत अर्जित प्रतिष्ठा, जल्दी ही तार- तार हो जाती है.
सुप्रभात में आया ये मैसेज बहुत ही सुंदर संदेश दे रहा है। लोग कहते हैं चार दिन की जिंदगी है मौज- मस्ती करो क्या जरूरत है परेशान होने की। कुछ हद तक बात सही लगती है। मन क्या करे सुंदर सजीले वस्त्र खरीदे, पुस्तके खरीदे, सत्संग में जाए, फ़िल्म देखे या मोबाइल पर चैटिंग करे?
प्रश्न तो सारे ही कठिन लग रहे हैं, एक अकेली जान अपनी तारीफ़ सुनने के लिए क्या करे क्या न करे? सभी प्रश्नों के उत्तर गूगल बाबा के पास रहते हैं सो मैंने भी उन्हीं की शरण में जाना उचित समझा, प्रतिष्ठा कैसे बढ़ाएँ सर्च करते ही एक से एक उपाय सामने आने लगे, यू ट्यूब पर तो बौछार है ऐसे वीडियो की। हमारे मन में अहंकार कहीं न कहीं छुपा बैठा होता है जो जैसे ही अवसर पाता है निकल भागता है, सो वो भी हाज़िर हो गया, उसने तुरंत दिमाग़ को संदेश दिया कि क्या सारी उमर गूगल बाबा की चाकरी में निकाल दोगे, चलो अभी यू ट्यूब पर एकाउंट बनाओ और जल्दी से मोटिवेशनल वीडियो पोस्ट करो और हाँ सभी के व्हाट्सएप एप नम्बरों पर ये लिंक ब्राडकास्ट करना न भूलना।
अब जाकर दिल को सुकून आया कि सुबह जो मैसेज पढ़ा उसे कितनी जल्दी अमल में लाया, वाह ऐसे ही लोग सम्मान पाते हैं जो तुरंत कार्य सिद्धि में जुट जाते हैं।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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