डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय आलेख चुनौतियाँ व प्रतिकूल परिस्थितियाँ। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 272 ☆

चुनौतियाँ व प्रतिकूल परिस्थितियाँ… ☆

‘चुनौतियाँ व प्रतिकूल परिस्थितियाँ हमें आत्म-साक्षात्कार कराने आती हैं कि हम कहाँ हैं? तूफ़ान हमारी कमज़ोरियों पर प्रहार करते हैं। फलत: हमें अपनी असल शक्ति का आभास होता है’ उपरोक्त पंक्तियाँ रोय टी बेनेट की प्रेरक पुस्तक ‘दी लाइट इन दी हार्ट’ से उद्धृत है। जीवन में चुनौतियाँ हमें अपनी सुप्त शक्तियों से अवगत कराती हैं कि हम में कितना साहस व उत्साह संचित है? हम उस स्थिति में प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने में कितने सक्षम हैं? जब हमारी कश्ती तूफ़ान में फंस जाती व हिचकोले खाती है; वह हमें भंवर से मुक्ति पाने की राह भी दर्शाती है। वास्तव में भीषण आपदाओं के समय हम वे सब कर गुज़रते हैं, जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की होती।

सो! चुनौतियाँ, प्रतिकूल परिस्थितियाँ, तूफ़ान व सुनामी की विपरीत व गगनचुंबी लहरें हमें अपनी अंतर्निहित शक्तियों प्रबल इच्छा-शक्ति, दृढ़-संकल्प व आत्मविश्वास का एहसास दिलाती हैं; जो सहसा प्रकट होकर हमें उस परिस्थिति व मन:स्थिति से मुक्त कराने में रामबाण सिद्ध होती हैं। परिणामतः हमारी डूबती नैया साहिल तक पहुंच जाती है। इस प्रकार चिंता नहीं, सतर्कता इसका समाधान है। नकारात्मक सोच हमारे मन में भय व शंका का भाव उत्पन्न करती है, जो तनाव व अवसाद की जनक है। यह हमें हतोत्साहित कर नाउम्मीद करती है, जिससे हमारी सकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है और हम अपनी मंज़िल पर नहीं पहुंच सकते।

दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला के अनुसार ‘हिम्मतवाला वह नहीं होता, जिसे डर नहीं लगता, बल्कि वह है; जिसने डर को जीत लिया है। सो! भय, डर व शंकाओं से मुक्त प्राणी ही वास्तव में वीर है; साहसी है, क्योंकि वह भय पर विजय प्राप्त कर लेता है।’ इस संदर्भ में सोहनलाल द्विवेदी जी की यह पंक्तियां सटीक भासती हैं ‘लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती/ कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।’ यदि मानव अपनी नौका को सागर के गहरे जल में नहीं उतारेगा तो वह साहिल तक कैसे पहुंच पायेगा? मुझे स्मरण हो रही हैं वैज्ञानिक मेरी क्यूरी की वे पंक्तियां ‘जीवन देखने के लिए नहीं; समझने के लिए है। सकारात्मक संकल्प से ही हम मुश्किलों से बाहर निकल सकते हैं’– अद्भुत् व प्रेरक है कि हमें प्रतिकूल परिस्थितियों व चुनौतियों से डरने की आवश्यकता नहीं है; उन्हें समझने की दरक़ार है। यदि हम उन्हें समझ लेंगे तथा उनका विश्लेषण करेंगे तो हम उन आपदाओं पर विजय अवश्य प्राप्त कर लेंगे। सकारात्मक सोच व दृढ़-संकल्प से हम पथ-विचलित नहीं हो सकते और मुश्किलों से आसानी से बाहर निकल सकते हैं। यदि हम उन्हें समझ कर, सूझबूझ से उनका सांगोपांग विश्लेशण करेंगे; हम उन भीषण आपदाओं पर विजय प्राप्त कर सकेंगे।

यदि हमारे अंतर्मन में सकारात्मकता व दृढ़-संकल्प निहित है तो हम विषम परिस्थितियों में भी विचलित नहीं हो सकते। इसके लिए आवश्यकता है सुसंस्कारों की, घर-परिवार की, स्वस्थ रिश्तों की, स्नेह-सौहार्द की, समन्वय व सामंजस्य की और यही जीवन का मूलाधार है। समाजसेवी नवीन गुलिया के मतानुसार ‘सागर की हवाएं एवं संसार का कालचक्र हमारी इच्छानुसार नहीं चलते, किंतु अपने समुद्री जहाज रूपी जीवन के पलों का बहती हवा के अनुसार उचित उपयोग करके हम जीवन में सदैव अपनी इच्छित दिशा की ओर बढ़ सकते हैं।’ नियति का लिखा अटल होता है; उसे कोई नहीं टाल सकता और हवाओं के रुख को बदलना भी असंभव है। परंतु हम बहती हवा के झोंकों के अनुसार कार्य करके अपना मनचाहा प्राप्त कर सकते हैं। सो! हमें पारस्परिक फ़ासलों व मन-मुटाव को बढ़ने नहीं देना चाहिए। परिवार व दोस्त हमारे मार्गदर्शक ही नहीं; सहायक व प्रेरक के दायित्व का वहन करते हैं। परिवार वटवृक्ष है। यदि परिवार साथ है तो हम विषम परिस्थितियों का सामना कर सकते हैं। इसलिए उसका मज़बूत होना आवश्यक है। समाजशास्त्री कुमार सुरेश के अनुसार ‘परिवार हमारे मनोबल को बढ़ाता है; हर संकट का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है; हमारे विश्वास व सामर्थ्य को कभी डिगने नहीं देता।’ जीवन शैली विशेषज्ञ रचना खन्ना सिंह कहती हैं कि ‘परिवार को मज़बूत बनाने के लिए हमें पारस्परिक मतभेदों को भूलना होगा; सकारात्मक चीज़ों पर फोक़स करना होगा तथा नकारात्मक बातों से दूर रहने का प्रयास करना होगा। यदि हम संबंधों को महत्व देंगे तो हमारा हर पल ख़ुशनुमा होगा। यदि बाहर युद्ध का वातावरण है, तनाव है और उन परिस्थितियों में नाव डूब रही है, तो सभी को परिवार की जीवन-रक्षक जैकेट पहनकर एक साथ बाहर निकालना होगा।’ पद्मश्री निवेदिता सिंह के विचार इस तथ्य पर प्रकाश डालते हैं कि संकल्प के साथ प्रार्थना करें ताकि वातावरण में सकारात्मक तरंगें आती रहें, क्योंकि इससे माहौल में नकारात्मकता के स्थान पर सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश पाती है और सभी दु:खों का स्वत: निवारण हो जाता है।

जीवन में यदि हम आसन्न तूफ़ानों के लिए पहले से सचेत रहते हैं; तो हम शांत, सुखी व सुरक्षित जीवन जी पाते हैं। स्वामी विवेकानंद जी के शब्दों में ‘यदि तुम ख़ुद को कमज़ोर समझते हो तो कमज़ोर हो जाओगे। यदि ख़ुद को ताकतवर सोचते हो, ताकतवर हो जाओगे।’ सो हमारी सोच ही हमारे भाग्य को निधारित करती है। परंतु इसके लिए हमें वक्त की कीमत को पहचानना आवश्यक है। योगवशिष्ठ के अनुसार ‘संसार की कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जिसे सत्कर्म एवं शुद्ध पुरुषार्थ द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता।’

हमारा मस्तिष्क बचपन से ही चुनौतियों को समस्याएं मानना प्रारंभ करने लग जाता है और बड़े होने तक वे अवचेतन मन में इस प्रकार घर कर जाती हैं कि हम यह विचार ही नहीं कर पाते कि ‘यदि समस्याओं का अस्तित्व न होगा तो हमारी प्रगति कैसे संभव होगी? उस स्थिति में आय के स्रोत भी नहीं बढ़ेंगे।’ परंतु समस्या के साथ उसके समाधान भी जन्म ले चुके होते हैं। यदि सतही तौर पर सूझबूझ से समस्याओं से उलझा जाए; उन्हें सुलझाने से न केवल आनंद प्राप्त होगा, बल्कि गहन अनुभव भी प्राप्त होगा। नैपोलियन बोनापार्ट के शब्दों में ‘समस्याएं भय व डर से उत्पन्न होती हैं। यदि डर का स्थान विश्वास ले ले; तो वही समस्याएं अवसर बन जाती हैं। वे स्वयं समस्याओं का सामना विश्वास के साथ करते थे और उन्हें अवसर में बदल डालते थे। यदि कोई उनके सम्मुख समस्या का ज़िक्र करता था तो वे उसे बधाई देते हुए कहते थे कि आपके पास समस्या है; तो बड़ा अवसर आ पहुंचा है। अब इस अवसर को हाथों-हाथ लो और समस्या की कालिमा में सुनहरी लीक खींच दो।’ समस्या का हल हो जाने के पश्चात् व्यक्ति को मानसिक शांति, अर्थ व उपहार की प्राप्ति होती है और समस्या से भय समाप्त हो जाता है। वास्तव में ऐसा उपहार अर्थ व अवसर हैं, जो मानव की उन्नति में सहायक सिद्ध होते हैं।

चुनौतियाँ व प्रतिकूल परिस्थितियाँ हमें कमज़ोर बनाने नहीं; हमारा मनोबल बढ़ाने व सुप्त शक्तियों को जाग्रत करने को आती हैं। सो! उनका सहर्ष स्वागत-सत्कार करो; उनसे डर कर घबराओ नहीं, बल्कि उन्हें अवसर में बदल डालो और  डटकर सामना करो। इस संदर्भ में मदन मोहन मालवीय जी का यह कथन द्रष्टव्य है–’जब तक असफलता बिल्कुल छाती पर सवार न हो बैठे; दम न घोंट डाले; असफलता को स्वीकार मत करो।’ अरस्तु के शब्दों में ‘श्रेष्ठ व्यक्ति वही बन सकता है, जो दु:ख और चुनौतियों को ईश्वर की आज्ञा स्वीकार कर आगे बढ़ता है।’ जॉर्ज बर्नार्ड शॉ का मत भी कुछ इसी प्रकार का है कि ‘यदि आप इस प्रतीक्षा में रहे कि लोग आकर आपकी मदद करेंगे, तो सदैव प्रतीक्षा करते रह जाओगे।’ भगवद्गीता में ‘कोई भी दु:ख संसार में इतना बड़ा नहीं है, जिसका कोई उपाय नहीं है।’  यदि मनुष्य जल्दी से पराजय स्वीकार न करके अपनी ओर से प्रयत्न करे, तो वह दु:खों पर आसानी से विजय प्राप्त कर सकता है। जब मन कमज़ोर होता है, परिस्थितियाँ समस्याएं बन जाती हैं; जब मन स्थिर होता है, चुनौती बन जाती हैं और जब मन मज़बूत होता है; वे अवसर बन जाती हैं। ‘हालात सिखाते हैं बातें सुनना/ वरना हर शख़्स फ़ितरत से/ बादशाह होता है।’ इन्हीं शब्दों के साथ अपनी लेखनी को विराम देती हूं।

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© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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