प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित – “कविता – अनुपम भारत…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।)
☆ काव्य धारा # 221 ☆
☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – अनुपम भारत… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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अपने में आप सा है, भारत हमारा प्यारा
जग में चमकता जगमग जैसे गगन का तारा।
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हैं भूमि भाग अनुपम नदियाँ-पहाड़ न्यारे
उल्लास से तरंगित सागर के सब किनारे ।
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ऋतुएँ सभी रंगीली, फल-फूल सब रसीले
इतिहास गर्वशाली, आँचल सुखद सजीले।
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है सभ्यता पुरानी, परहित की भावनाएँ
सत्कर्ममय हो जीवन है मन की कामनाएँ।
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गाँवों में भाईचारे का सुखद स्नेह व्याप्त था।
हवाएँ नरम थीं, मौसम सुहावना था।
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लोगों में सरलता है दिन-रात सब सुहाने
त्यौहार प्रीतिमय हैं, अनुराग सिक्त गाने।
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रामायण और गीता ज्ञान की अद्वितीय पुस्तकें हैं जो
मन को विचलित नहीं होना, बल्कि स्थिर रहना सिखाती हैं।
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ये देश है सुहाना, धर्मों का यहां पर मेला
असहाय भी न पाता, खुद को जहाँ अकेला।
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आध्यात्मिक है चिन्तन, धार्मिक विचारधारा
संसार से अलग है, भारत पुनीत प्यारा।
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है ‘एकता विविधता में’ लक्ष्य अति पुराना
भारत ‘विदग्ध’ जग का आदर्श है सुहाना ।
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈