श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक शिक्षाप्रद लघुकथा “बता”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं # 46 ☆
☆ लघुकथा – बता ☆
“माना कि मानव ने वृक्षों का भरपूर उपयोग कर इमारतों के जंगल सजा लिया, मगर तू तो आरी है और यह भी जानती है कि हम सभी वृक्ष जीते जी भी काम आते है और मरने के बाद भी.“
“हाँ, यह निर्विवाद सत्य है .”
“मगर तू यह बता कि मरने के बाद मानव क्या काम आता है ?”
यह सुन कर आरी के साथ-साथ मानव की हंसी भी गायब हो चुकी थी.
© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”