श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता सूर्य बनकर तुम आए थे...”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 215 ☆

☆ # “सूर्य बनकर तुम आए थे…” # ☆

(डॉ बाबासाहेब अंबेडकर जी के जन्मदिवस पर विशेष)

अंधकार में दीपक बनकर

तुम हमारे आए थे

नई सुबह का नया संदेशा

जीवन में तुम लाए थे

 

हमने सूरज देखा कब था

डर का साया उतार फेका कब था

हम उलझ गए थे मंत्र तंत्र में

तिलिस्म के  अभेद्य तंत्र में

स्याह रात हंस रही थी

नागिन बनकर डस रही थी

अपना जाल वो कस रही थी

हमारी पीढियां उन में फंस रही थी

तोड़ सके इस जाल को

ऐसी कोई बांह नहीं थी

फंदे पड़े थे गले में

जीने की कोई राह नहीं थी

तब घने मेघों को चीरकर 

किरण बनकर तुम आए थे

नई सुबह का नया संदेशा

जीवन में तुम लाए थे

 

जब किरणों ने छुआ अंधेरा

तम का कांपने लगा था डेरा

जब रश्मि ने मारा फेरा

तम को व्याकुलता ने घेरा

फिर नए-नए प्रपंच रचे

ताकि किरणों का ना अस्तित्व बचें

सूर्य को भी बंदी बनाया

किरणों को  बदली में छुपाया

दिन को रात बनानी चाही

इस पाखंड ने फिर लाई तबाही

तब किरणों से विद्रोह कराकर

सूर्य बनकर तुम आए थे

नई सुबह का नया संदेशा

जीवन में तुम लाए थे

 

नई किरणों ने जब से छुआ है

तन मे  नई ऊर्जा का संचार हुआ है

बुझी बुझी पलकों ने भी

अपनी पलकें खोली है

जागी हुई आंखों ने

आजादी की बात बोली है

सबकी आंखों में है सपने

बेहतर हो आगे दिन अपने

पंचशील की शिक्षा ली है

धम्म की हमने दीक्षा ली है

शिक्षा से हम आगे बढ़ेंगे

धम्म से नया इतिहास गढ़ेंगे

तब कष्ट झेलकर

हमारे अधरों पर

तुम मुस्कान सजाए थे

नई सुबह का नया संदेशा

जीवन में तुम लाए थे

 

अंधकार में दीपक बनकर

तुम हमारे आए थे

नई सुबह का नया संदेशा

जीवन में तुम लाए थे  /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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