श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हमप्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है आपके द्वारा श्री अरविंद मिश्र जी द्वारा लिखित  शिष्टाचार आयोग की सिफारिशेंपर चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 178 ☆

“शिष्टाचार आयोग की सिफारिशें” – व्यंग्यकार… श्री अरविंद मिश्र☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

पुस्तक चर्चा

कृति … शिष्टाचार आयोग की सिफारिशें

व्यंग्यकार …अरविंद मिश्र

पृष्ठ … १५२

मूल्य २२५ रु

आईसेक्ट पब्लिकेशन, भोपाल

चर्चाकार … विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

अरविंद मिश्र द्वारा लिखित व्यंग्य की कृति शिष्टाचार आयोग की सिफारिशें, एक रोचक और विचारोत्तेजक कृति है, जो भारतीय समाज और व्यवस्था में व्याप्त औपचारिकता, दिखावे और विरोधाभासों पर तीखा कटाक्ष करती है। यह पुस्तक व्यंग्य की शैली में लिखी गई है, जो पाठक को हंसाने के साथ-साथ गहरे सामाजिक संदेशों पर चिंतन करने के लिए प्रेरित करती है। मिश्र का लेखन सहज, चुटीला और प्रभावशाली है, जो उनकी भाषा पर मजबूत पकड़ और समाज को गहराई से समझने की क्षमता को दर्शाता है।

पुस्तक का केंद्रीय विषय एक काल्पनिक “शिष्टाचार आयोग” के इर्द-गिर्द घूमता है, जो शिष्टाचार के नाम पर हास्यास्पद और अव्यवहारिक सिफारिशें प्रस्तुत करता है। यह आयोग समाज के विभिन्न पहलुओं-जैसे नौकरशाही, सामाजिक रीति-रिवाज, और व्यक्तिगत व्यवहार-को अपने निशाने पर लेता है। लेखक ने इन सिफारिशों के माध्यम से यह दिखाने की कोशिश की है कि कैसे शिष्टाचार के नाम पर अक्सर सतही नियमों को थोपा जाता है, जो वास्तविकता से कोसों दूर होते हैं। उदाहरण के लिए, यह विचार कि हर बात में औपचारिकता को प्राथमिकता दी जाए, भले ही वह कितनी भी बेतुकी क्यों न हो, पाठक को हंसी के साथ-साथ सोचने पर मजबूर करती है।

शीर्षक व्यंग्य से यह अंश पढ़िये … ” समाज में ऐसे बहुत सारे लोग हैं जो खूब इधर-उधर करते है,

लेकिन उनकी दाल आसानी से नहीं गलती। नीचे निगाह करके रास्ता पार करने से भी राह चलतों को दाल में काला नजर आने लगता है। समाज में बहुत से जन-जागरण के लिए समर्पित सदाचारियों का काम केवल आते-जाते लोगों पर निगाह रखना होता है। आस-पड़ोस, मुहल्ले के निवासी यदि बहुत समय तक सुख से रहते हैं तो इन चौकीदारों को अजीर्ण हो जाता है। इस प्रकार के समाज सेवी बंधुओं को अपना मुँह दर्पण में देखने की फुर्सत नहीं होती। जहाँ तक शिष्टाचार आयोग की कार्य प्रणाली का प्रश्न है तो यह अशिष्ट व्यक्तियों से सदैव सावधान रहता है। “

“भ्रष्टाचार निवारण मंडल में कार्यरत् कर्मचारी इस बात की भरसक कोशिश करते हैं कि जनता का आचरण शुद्ध न रहे। भला उन्हें अपने विभाग को जीवित जो रखना है। यह उन कर्मचारियों की निष्ठा का उदाहरण है। अपने पैरों पर आप कुल्हाड़ी कौन मारना चाहेगा। “

अरविंद मिश्र की शैली में एक खास बात यह है कि वे जटिल मुद्दों को सरल और हल्के-फुल्के अंदाज में पेश करते हैं। उनकी भाषा में हिंदी की मिठास और लोकप्रिय मुहावरों का प्रयोग देखने को मिलता है, जो व्यंग्य को और भी प्रभावी बनाता है। हालांकि, कुछ जगहों पर पाठक को लग सकता है कि व्यंग्य की गहराई या मौलिकता थोड़ी कम हो गई है, खासकर जब विषय पहले से चर्चित सामाजिक समस्याओं की ओर मुड़ता है। फिर भी, लेखक की यह कोशिश सराहनीय है कि उन्होंने रोजमर्रा की जिंदगी से उदाहरण चुनकर पाठकों से सीधा संवाद स्थापित किया।

कुल मिलाकर, शिष्टाचार आयोग की सिफारिशें एक मनोरंजक और विचारशील पुस्तक है, जो व्यंग्य के प्रेमियों के लिए एक सुखद अनुभव प्रदान करती है। यह न केवल हल्के-फुल्के पठन के लिए उपयुक्त है, बल्कि समाज के उन पहलुओं पर भी प्रकाश डालती है, जिन्हें हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। अरविंद मिश्र ने इस कृति के जरिए अपनी लेखन कुशलता का परिचय दिया है और इसे पढ़कर पाठक निश्चित रूप से मुस्कुराएंगे और सोच में डूब जाएंगे।

किताब फेडरेशन आफ इण्डियन पब्लिशर्स से पुरस्कृत प्रकाशक आईसेक्ट पब्लिकेशन, भोपाल से छपी है। मैं इसे व्यंग्य में रुचि रखने वाले अपने पाठको को पढ़ने की संस्तुति करता हूं।

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments