सुश्री दीपा लाभ
(सुश्री दीपा लाभ जी, बर्लिन (जर्मनी) में एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। हिंदी से खास लगाव है और भारतीय संस्कृति की अध्येता हैं। वे पिछले 14 वर्षों से शैक्षणिक कार्यों से जुड़ी हैं और लेखन में सक्रिय हैं। आपकी कविताओं की एक श्रृंखला “अब वक़्त को बदलना होगा” को हम श्रृंखलाबद्ध प्रकाशित करने का प्रयास कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला की अगली कड़ी।)
☆ कविता ☆ अब वक़्त को बदलना होगा – भाग – 4 ☆ सुश्री दीपा लाभ ☆
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जो बात-बात पर अपने घर
प्रतिदिन महाभारत करते हैं
जो जड़, जमीन, जोरू के लिए
अपने अपनों से लड़ते हैं
क्या याद दिलाऊँ उनको आज
कौरवों का था क्या हश्र हुआ
उनके शव पर रोने वाला
ना बचा कोई वंशज हुआ
दुष्कर्मों का परिणाम कभी
अपने हक़ में कब आया है
यह सत्य आज समझना होगा
अब वक़्त को बदलना होगा
जहाँ गली-गली में आए दिन
अबला का चीर हरा जाता
जहाँ जनता मूक खड़ी होकर
देखे मृत्यु-तांडव शीष झुका
यों शून्य हो चुकी चेतना को
अब तो जागृत होना होगा
शिथिल पड़ी मानवता को
संवेदनशील होना होगा
अब वक़्त को बदलना होगा
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© सुश्री दीपा लाभ
बर्लिन, जर्मनी