डॉ निधि जैन
( डॉ निधि जैन जी भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “चाँद पाने का सफर ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 9 ☆
☆ चाँद पाने का सफर ☆
चांदी की कटोरी से माँ ने चाँद दिखाया था कभी,
चाँद छूने की आकांक्षा को जगाया था कभी।
उसे पाने को जी भी ललचाया था कभी,
गोल-गोल चाँद से जड़ा आकाश,
आकाश में तारों के बीच में अड़ा,
सुन्दर कोमल, माँ की कटोरी से शायद बड़ा,
चांदी की कटोरी से माँ ने चाँद दिखाया था कभी,
चाँद छूने की आकांक्षा को जगाया था कभी।
छत पर खड़ी करती रहती हूँ मैं कोशिश कभी,
कैद करना चाहती हूँ आकाश के ये सुन्दर पूत को कभी,
छू लेना चाहती हूँ उस मौन प्रतीक को कभी,
क्या ये कोशिश पूरी हो पायेगी कभी,
चांदी की कटोरी से माँ ने चाँद दिखाया था कभी,
चाँद छूने की आकांक्षा को जगाया था कभी।
© डॉ निधि जैन, पुणे