श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक अप्रतिम लघुकथा “ सुधारस ”। जिस प्रकार सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार मानव के चरित्र के भी दो पहलू होते हैं । व्यक्ति की पहचान तो समय पर ही होती है। ऐसे कई तथ्यों को लेकर आई हैं श्रीमती सिद्धेश्वरी जी वास्तव हम किसी के प्रति जैसी धारणा बना लें हमें वह वैसा ही दिखने लगता है। रिश्तों पर लिखी गई एक सार्थक एवं अतिसंवेदनशील सफल लघुकथा। इस सर्वोत्कृष्ट लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 48 ☆
☆ लघुकथा – सुधारस ☆
ट्रिन – ट्रिन फोन की घंटी बजी। हेलो बिना सुने ही सामने से रोती हुई आवाज़ “सुधीर, तुम्हारे बड़े भैया को दिल का दौरा पड़ा है। उन्हें लेकर हम अस्पताल जा रहे हैं। दया कर कुछ रुपए का इंतजाम कर देना।”
“मैं सब लौटा दूंगी घर को गिरवी रख कर। मेरी बात पर विश्वास करना, भगवान के लिए” और फोन बंद हो गया।
सुधीर उस समय बाथरूम में स्नान कर रहा था। जल्दी-जल्दी ऑफिस जाना था। इसलिए अपनी धर्मपत्नी को आवाज लगा कर बोला…” मेरा टिफिन तैयार कर देना सुधा, आज लेट हो गया हूं खाना नहीं खाऊगां।”
सुधा भी कुछ नहीं बोली। “अभी लीजिए” कह कर डिब्बा जल्दी पकड़ा। सुधीर के जाने के बाद जल्दी जल्दी तैयार हो जरूरी समान रख, अस्पताल के लिए निकल पड़ी।
जेठानी जी ने देखा कि देवरानी सुधा सिढ़ियों से चली आ रही है। वह जोर जोर से रोने लगी। उसने समझा आज फिर कुछ लड़ाई हो गई है सुधीर और सुधा के बीच हम लोगों को लेकर। तभी तो सुधीर नहीं आया। पर उसका अंदाज गलत निकला।
सुधा ने गले लगा कर कहा “दीदी यह कुछ रुपए और सारा इंतजाम करके मैं आई हूं। जेठजी को कुछ नहीं होगा। फोन मैंने ही उठाई थी। बस आप डॉक्टर को ऑपरेशन के लिए हां बोल दीजिए।”
कागजी कार्यवाही और चेकअप के बाद इलाज तत्काल शुरू हो गया। सुधा के जेठ जी खतरे से बाहर हो गए। तब तक शाम हो चली। सुधा ने कहा” दीदी अब मैं घर जा रही हूं आप चिंता ना करना। मैं फिर आऊंगी।”
ऑफिस से निकलते समय सुधीर का पड़ोसी, जो कि उनके भैया को अस्पताल पहुंचा कर आया था मिल गया। उसने बताया कि “भैया का ऑपरेशन सफल हो गया और अब खतरे से बाहर हैं।” इतना सुनते ही सुधीर परेशान सा हो गया और भागते हुए गाड़ी चलाकर ऑफिस से अस्पताल की ओर निकल पड़ा। अस्पताल के जाते तब उसने रास्ते में सोचा कि पता नहीं भाभी ने मुझे खबर क्यों नहीं दिया! क्या मैं इतना पराया हो गया ? हाँफते हुए वह सीढियां चढ अस्पताल पहुंचा। भाभी के सामने पहुंचा।
भाभी रोते हुए मुस्कुरा कर बोली “सुधा इतनी भी खराब नहीं है। जितना हमने सोच लिया था।” सुधीर को कुछ समझ नहीं आया। भाभी ने सब कहानी बताई। सारा पैसों का इंतजाम और अस्पताल की पूरी देख रेख सुधा ने किया है और यह भी कह कर गई कि ‘अब हम सब अस्पताल से घर जाकर, एक साथ रहेंगे।’ ऐसा बोल गई है। आज सुधीर भाभी से बोल रहा था “सच में मैं हार गया, सचमुच सुधा रस से” और मुस्कुरा उठा।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश