श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  व्यंग्य – दचक्का संस्कृति। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे ।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 49

☆ व्यंग्य –  दचक्का संस्कृति ☆ 

पहले हम दिल्ली से अपने शहर लौटते थे तो हमारा शहर गांव जैसा लगता था बेहद आत्मीयता लिए पोहा – जलेबी सुबह और इमरती शाम को। हरि पान वाला तत्कालीन कपड़ा मंत्री की उधारी का हिसाब लगाता मिलता। दचका भरी सड़कों के जंजाल में अस्पताल पहुंचने के पहले रिक्शे में नार्मल डिलेवरी हो जाती, इत्ता प्यारा था हमारा अपना शहर। तीन साल पहले  इसे स्मार्ट सिटी बनाने हेतु घोषित किया गया, तीन साल गुजर गए पर सड़कों के गड्ढेे दिलेरी से सड़क पर कब्जा जमाये हुए हैं ऐसे में सड़क पर चलते हुए अचानक स्मार्ट सिटी का नाम याद आ जाता है।

क्या आप किसी ऐसे शहर की कल्पना कर सकते हैं जिसकी सड़कें चमचमाती सपाट सजी हुई हों, सड़कों पर हर खम्भे पर झकास बल्ब लगे हों, रात में पैदल यात्री के उपस्थित होने पर बल्ब स्वत: जल जाऐं अन्यथा डिम हो जाएं। सूर्य की रोशनी के अनुरूप घरों की लाइटें घटाई-बढ़ाई जा सकें, स्वच्छ पर्यावरण सुंदर परिवहन व्यवस्था, बिजली पानी की 24 घंटे उपलब्धता, स्मार्ट कूड़ेदान… आदि…. ये सब स्मार्ट सिटी की बातें दचके खाते हुए याद करने में मजा तो आता है। हमारे शहर की किच्च पिच्च गड्ढेदार सड़कों में चलते चलते इतने दचक्के पड़ जाते हैं कि हड्डी के डाक्टर के पास जाना मजबूरी हो जाती है। खपरैल अस्पताल इन्हीं कारणों से कई मंजले में तब्दील हो गए। जब हड्डी के डाक्टर के पास ज्यादा पैसा बढ़ जाता है तो उसका मन राजनीति की हड्डी खाने की तरफ लपलपाने लगता है। दचक्का लगने से कई फायदे हैं पंचर की दुकानें खूब चलतीं हैं, अस्थि रोग विशेषज्ञ के पास मरीजों की रेलमपेल भीड़ पहुंचती है दचके खाने से महिलाओं में समय पूर्व प्रसव पीड़ा उठ बैठती है। एक अस्थि रोग विशेषज्ञ ने अपनी एक्सरे मशीन में ऐसा इंतजाम किया है कि हड्डी भले न टूटी हो एक्सरे रिपोर्ट में हड्डी में क्रेक जरुर दिखेगा।

पान की दुकान में जाओ तो वहां भी गड्ढों और स्मार्ट सिटी की चर्चा होती है, सड़क का ठेकेदार सड़कों की दशा और दिशा पर कहता है कि यहां की जमीन में लफड़ा है ऊपर से डामल पोतो तो गड्ढा छुपा बैठा रहता है पानी गिरा और गड्ढा फन काड़ के बाहर निकला। ठेकेदार का ये भी कहना जायज है कि सड़क में ज्यादा गड्ढे रहने से ट्रैफिक कन्ट्रोल रहता है और स्पीड ब्रेकर बनाने के झंझट से मुक्ति मिलती है। सड़क की बात बदलते हुए ठेकेदार  पान की पीक से पास के पोल को रंग देता है और स्वच्छता अभियान के बैनर में हिज्जे की गलती दिखा देता है।

दूसरा ठेकेदार पान में बाबा चटनी चमनबहार और चवन्नी डालने की फरमाइश कर रहा है पान खाने का जो मजा इहां है वो कहीं नहीं….. और अपना शहर राष्ट्रीय एकता की मिसाल है इहां व्हीकल स्टेट में बंगाली, गोरखपुर प्रेमनगर में सरदार जी, मदार टेकरी में भाई जान, गढ़ा में बम्हना, और इहां जे और उहां बे….।शहर से खुश होकर एक कह गए संस्कारधानी तो दूसरे कह गए गुंडाधानी। अभी स्मार्ट सिटी मामले में भी अपना शहर सातवें पायदान पर बैठ गया है और सड़क के गड्ढे हैं कि हटने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। रिमझिम पानी गिर रहा है गड्ढे लबालब भर गए हैं थोड़ी थोड़ी देर में मोटरसाइकिल वाले गड्ढे में दचक्का खाके पलटी मार रहे हैं और ऐसे में पान की दुकान के बाजू में खड़ा शराबी खूब मजा ले रहा है ज्यादा लग गई है इसलिए स्मार्ट सिटी पर बक बक कर रहा है बीच बीच में देश की दुर्दशा पर रोने लगता है कहता है बड़े बाबू दौड़ दौड़ चीन काहे को जाते हैं, चीन मिलाके मारेगा तो सब समझ में आ जायेगा।

पान की दुकान टाइम पास करने का अच्छा अड्डा होता है तरह-तरह के लोग आते जाते रहते हैं उस तरफ से मस्ती में चूर एक शराबी पान की दुकान की तरफ गाना गाते हुए बढ़ रहा है

“जिंदगी ख्बाब है… ख्बाब में सच है क्या.. और भला झूठ है क्या……..”

सबका ध्यान उसी की तरफ हो जाता है, सड़क के गड्ढे में पैर पड़ जाने से गिरकर उठता है फिर पास खड़े लोगों को गलियाने लगता है पान की दुकान पर खड़े लोगो सड़क के गड्ढों को दोष नहीं देना, मेरा शहर स्मार्ट सिटी बन रहा है……. बाजू वाले भाई ने आंख मारकर ईशारा किया इहां से बढ़ लेओ, ये आदमी लफड़ेबाज है जेब में कट्टा रखे है।

हम लोग डरते हुए, दचक्के खाते हुए और स्मार्ट सिटी की खूबियों पर बहस करते हुए आगे बढ़ ही रहे थे कि अचानक मोटर साइकिल वाले ने गड्ढे को बचाने के चक्कर में हमारी टांग तोड़ दी, अस्पताल पहुंचे तो नर्स झपकियां ले रही थी और हम लुटे लुटे दर्द से पिटे पिटे टूटा पैर लिए हुए नर्स को पुकारते रहे …………।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
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Shyam Khaparde

भाई मजेदार रचना, बधाई