श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक अप्रतिम कविता “ॐ निनाद में शून्य सनातन ”। इस आध्यात्मिक रचना का शब्दशिल्प अप्रतिम है। इस सर्वोत्कृष्ट रचना के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 48 ☆
☆ कविता – ॐ निनाद में शून्य सनातन ☆
ॐ निनाद में शून्य सनातन
है ब्रह्मांड समस्त समाहित।
देवगणो ने मिलकर किया
नव सृष्टि का विस्तार
विष्णु पद से निकली गंगा
शिव जटा पर रही सवार
ब्रह्मांड सदा गुंजित मान
स्वर ॐ निरंतर प्रवाहित।
आदि अनंत के कर्ता शिव
अनंत कोटि प्रतिपालक
कण कण रूप अजय अक्षुण
नाद करत मृदंग संग ढोलक
शिव तांडव नित जनहित।
सोहे नटराज रुप जनहित
कल कल वेग निरंतर बहती
निर्झर झर झर वन उपवन
गूँज पर्वतों पर बिखराई
ऋषि मुनियों का तपोवन
स्वर लहरी जन जन प्रेरित
श्रंग नाद शिवम हिताहित।
देवो के महादेव सुशोभित
हिमगिरि सूता संग वास
भस्मी भूत लगाए रुद्रगण
पाए निरंकारी विश्वास
जन जन के प्रतिपालक शंभू
ॐ सत्य शिवम पर मोहित।
ॐ निनाद में शून्य सनातन
है ब्रह्मांड समस्त समाहित।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश
भावपूर्ण रचना