श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक विचारणीय लघुकथा “नकल”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं # 51 ☆
☆ लघुकथा – नकल ☆
परीक्षाहाल से गणित का प्रश्नपत्र हल कर बाहर निकले रवि ने चहकते हुए जवाब दिया, “निजी विद्यालय में पढ़ने का यही लाभ है कि छात्रहित में सब व्यवस्था हो जाती है.”
“अच्छा.” कहीं दिल में सोहन का ख्वाब टूट गया था.
“चल. अब, उत्तर मिला लेते है.”
“चल.”
प्रश्नोत्तर की कापी देखते ही रवि के होश के साथ-साथ उस के ख्वाब भी भाप बन कर उड़ चुके थे. वही सोहन की आँखों में मेहनत की चमक तैर रही थी.
सुंदर रचना