श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक विचारणीय लघुकथा “नई राह”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं # 52 ☆
☆ लघुकथा – नई राह ☆
“बेटा ! ये भगवा वस्त्र क्यों धारण कर लिए. क्या शादी नहीं करोगे ?”
“नहीं काका ! मुझे मेरे मम्मी-पापा जैसा नहीं बनाना है.”
“तब क्या करोगे तुम.”
“पहले प्रकृतिस्थ बनूंगा.”
“मतलब ?”
“पहले मैं नदी से सरसता व सरलता का पाठ सीखूंगा . फिर कबूतर जैसा शांत बनूँगा. तब मेरे इस कुत्ते से वफादारी ग्रहण करूँगा.”
“मगर यह सब क्यों बेटा?”
“ताकि मम्मी-पापा की तरह नफरत व छल-कपट की तरह जीने वाले माता-पिता को एक नई राह दिखा सकू.”