(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक अतिसुन्दर व्यंग्य “ नया भारत ”। यह बिलकुल सच है कि मार्केटिंग ने न केवल फ़ास्ट मूविंग कंस्यूमर गुड्स अपितु हमारे जीवन में भी अहम् भूमिका निभा रहे हैं। श्री विवेक जी की लेखनी को इस अतिसुन्दर व्यंग्य के लिए नमन । )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 56 ☆
☆ व्यंग्य – नया भारत ☆
मार्केटिंग का फंडा है जब किसी ब्रांड नेम की वैल्यू कुछ कम लगने लगे तो उसका नया अवतार प्रस्तुत करके लोकप्रियता बरकरार रखी जाती है. इसके लिये स्पार्कलिंग कलर्स में पैकेजिंग बदली जाती है, नये स्लोगन और टैग लाईन दी जाती है. हिन्दी में पढ़े उपसर्ग व प्रत्यय का भी समुचित उपयोग करके ब्रांड वैल्यू की रक्षा की जाती है. नाम के आगे “नया ” उपसर्ग लगा देने से सब कुछ नया नया सा हो जाता है. लोग पुराने की कमियां भूल जाते हैं, और नये के स्वप्न में खो जाते हैं. इस तरह लकड़ी की हांडी बारम्बार चढ़ाई जा सकती है. निजी क्षेत्र में तो एम बी ए पास युवा अपने इसी हुनर की मोटी तनख्वाहें पाते हैं. पूरे विश्वास से प्रोडक्ट बिना बदले ” भरोसा वही, पैकिंग नई ” का स्लोगन प्राईम टाईम पर विज्ञापन बाला बोलती है और सेल्स के आंकड़े बढ़ने लगते हैं, क्योकि जो दिखता है वही तो बिकता है. एक संस्थान का नाम उसके लोगो पर केपिटल लैटर्स में लिखा जाता था, फंड मैनेजर की नीयत में कुछ खोट आ गई, घोटाले का क्या है,हो गया. जांच वगैरह बिठा दी गईं, पर संस्थान तो नहीं बिठाया जा सकता था, लोगो बदल दिया गया, कैपिटल लैटर्स की जगह स्माल लैटर्स में संस्था का नया नाम लिख दिया गया. फंड फिर चल निकला. आखिर हर साल इस देश में करोड़ो की आबादी बढ़ रही है, पुरानो को न सही नयो को तो नये से परिचित करवाया ही जा सकता है. फ़ास्ट मूविंग कंस्यूमर गुड्स में एक नही अनेक प्रोडक्ट हैं,जो कभी गुणवत्ता में कम ज्यादा निकल आते हैं, कभी किसी मिलावट के शिकार हो जाते हैं, कभी कोई कीटाणु निकल आता है पैक्ड बोटल में पर मजाल है कि सेल्स के फिगर गिर जायें, लोगो की स्मृति कमजोर होती है, विज्ञापन की ताकत और नाम के आगे “न्यू” का प्रिफिक्स बेड़ा पार करवा ही देता है. एक टुथपेस्ट के सेल्स फिगर गिरे तो उसने प्रोडक्ट में नमक, तुलसी, बबूल, जाने क्या क्या मिलाकर एक के अनेक उत्पाद ही परोस दिये. खरीदो जो पसंद आये पर खरीदो हमसे ही.
देश के मामले भी तकनीकी मनोविज्ञान के सहारे मैनेज किये जाते हैं. अभी तक गरीबी हटाओ के नारो को, अच्छे दिनों के सपनो को, सुनहरे कल के सफर के तिलिस्म को, बेहतरी के लिये बदलाव को अखबारो के फुल पेज विज्ञापनो के सहारे वोटो में तब्दील करने के ढ़ेरो प्रयोग कईयो ने कई कई बार किये हैं. पर अब कुछ बेहतर की जरूरत लग रही है. इसलिये नामुमकिन से ना हटा दिया गया है. वहां से न लेकर या में मिलाकर, “नया” उपसर्ग जुड़ा ताकतवर रत पूरे भरोसे और श्रद्धा के साथ प्रस्तुत है. मेरी कामना है कि सचमुच ही मेरा भारत दिखने में स्मार्ट, व्यवहार में गंभीर, ताकत में फौलादी नया भारत हो जावे, तो फिर किसी को विज्ञापन में बोलना न पड़े काम खुद ही बोले आरोप लगाने से पहले आरोप लगाने वाला सौ दफा सोचे..
© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
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