डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है इस सदी की त्रासदी को बयां करती भावप्रवण रचना तुमको भी कुछ सूत्र सिखा दें….। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य # 52 ☆
☆ तुमको भी कुछ सूत्र सिखा दें…. ☆
अपना यशोगान करना
पहचान हमारी
आओ तुमको भी अचूक
कुछ सूत्र सिखा दें।
थोड़े से गंभीर
मुस्कुराहट महीन सी
संबोधन में भ्रातृभाव
ज्यों नीति चीन की,
हो शतरंजी चाल
स्वयं राजा, खुद प्यादे
आओ तुमको भी अचूक
कुछ सूत्र सिखा दें।।
हो निशंक, अद्वैत भाव
मैं – मैं, उच्चारें
दिनकर बनें स्वयं
सब, शेष पराश्रित तारे,
फूकें मंत्र, गुरुत्व
भेद, शिष्यत्व लिखा दें
आओ तुमको भी अचूक
कुछ सूत्र सिखा दें।।
बुद्ध, प्रबुद्ध, शुद्धता के
हम हैं पैमाने
नतमस्तक सम्मान
कई, बैठे पैतानें,
सिरहाना,सदियों का सब
भवितव्य बता दे
आओ तुमको भी अचूक
कुछ सूत्र सिखा दें।।
हों विचार वैविध्य,साधते
सभी विधाएं
अध्ययन, चिंतन, मनन
व्यर्थ की, ये चिंताएं,
जो मन आये लिखें और
मंचों पर बाँचें
आओ तुमको भी अचूक
कुछ सूत्र सिखा दें।।
सुरेश तन्मय
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
12/06/2020
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014