श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक विचारणीय लघुकथा “सजा ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं # 53 ☆
☆ लघुकथा – सजा ☆
“तुम ने जहर क्यों खाया था ? जानते हो आत्महत्या करने वाले को सजा होती है?”
“नहीं साहब ! मैं बीवी को अच्छी जिंदगी नहीं दे पा रहा था. बच्चे अच्छे खाने को तरस रहे थे. ऊपर से साहूकार का कर्ज , प्रकृति की मार. सब फसल चौपट हो गई थी . मैं घबरा गया था साहब. क्या करता?”
“तो मरने चले?”
“हाँ साहब ! मैं उन्हें तड़फता हुआ नही देख सकता था.”
“अच्छा. अब दोनों तड़फ़ना. एक बाहर और एक अन्दर.”
लाजवाब