श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “बहानेबाजी ”। वास्तव में श्रीमती छाया सक्सेना जी की प्रत्येक रचना कोई न कोई सीख अवश्य देती है। इस समसामयिक सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 23 ☆
☆ बहानेबाजी ☆
बहाना बनाने का गुण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक बड़ी कुशलता के साथ हस्तांतरित होता चला आ रहा । झूठ व मक्कारी दोनों ही इसके परममित्र हैं । पर कोरोना ने इस पर भी वार कर इसे चारो खाने चित्त कर दिया है । अब आप सोच रहे होंगे कि ये भी भला कोई चिंतन का मुद्दा है , सो जाग जाइये साहब आज की सबसे बड़ी समस्या यही है । जो भी लोग या कार्य हमें पसन्द नहीं आता था वहाँ हम बड़े चातुर्य के साथ सफेद झूठ बोल देते थे । पर अब क्या करेंगे….?
कोरोना के चलते एक बड़ा नुकसान हुआ है कि अब पुराने झूठ नहीं चल पा रहे हैं । पहले अक्सर ही लोग कह देते थे , घर पर नहीं हैं , अब तो सभी को घर पर ही रहना है। साहब कहाँ गए हैं ,इसका उत्तर भी सोच समझकर ही दिया जा सकता है क्योंकि बहुत से कन्टेनमेंट एरिया हैं जहाँ जाना प्रतिबंधित है ।
बच्चों की भी ऑन लाइन पढ़ाई शुरू हो चुकी है सो उन्हें भी अब समय पर उठना होगा । पहले तो पेटदर्द का बहाना चल जाता था पर अब कोई सुनवाई नहीं । नींद पूरी हो या न हो , तबियत ठीक हो या न हो पढ़ना तो पड़ेगा , ऐसा आदेश माताश्री ने पास कर दिया है ।
बस अब कोई बचा सकता है तो वो है नेटवर्क न मिलने का बहाना, पढ़ाई वाला नया एप ठीक से कार्य नहीं कर रहा या क्लास अटेंड कर फिर गोल मार देना । ये सब बहाने जोर -शोर से चल रहे हैं । मोबाइल या लैपटॉप तो हाथ में है ही, बस जो जी आये देखिए । न कोई चुगली करेगा , न टीचर कॉपी चेक करेगी । बस मम्मी का ही डर है ,जो धड़धड़ाते हुए किसी भी समय चेकिंग करने आ धमकती हैं ।
इस समय एक समस्या और जोर पकड़ रही है कि पहले अक्सर ही बीबी से कह देता था कि आज ऑफिस में ज्यादा काम है देर से आऊँगा पर अब तो समय से पहले ही घर आना पड़ता है क्योंकि नियत समय के बाद कर्फ़्यू लग जाता है । पहले दोस्तों के साथ गुलछर्रे उड़ाते रहो कोई रोकने -टोकने वाला नहीं था पर अब तो कोरोना के डर से वे भी कोई न कोई बहानेबाजी कर देते हैं ।
सदैव की तरह सिर दर्द है , मूड ठीक नहीं है , डिप्रेशन है, काम में मन नहीं लग रहा, ये बहाने आज भी उपयोगी बने हुए हैं । खैर वो कहते हैं न कि एक रास्ता बंद हो तो हजारों रास्ते खुलते हैं । इसलिए चिंता की कोई बात नहीं मनुष्य बहुत चिंतनशील प्राणी है ; अवश्य ही कोई न कोई नए झूठों का अविष्कार कर लेगा । कहा भी गया है आवश्यकता ही अविष्कार की जननी होती है ।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020
मो. 7024285788, [email protected]
अच्छी रचना
जी, हार्दिक धन्यवाद