(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक अतिसुन्दर समसामयिक व्यंग्य “न देखो टूटा हुआ लाकडाउन ”। श्री विवेक जी ने गंभीर प्रवृत्ति एवं अनुशासित पीढ़ी की मानसिक पीड़ा का बयां अत्यंत सुंदरता से किये है। श्री विवेक जी की लेखनी को इस अतिसुन्दर व्यंग्य के लिए नमन । )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 57 ☆
☆ व्यंग्य – न देखो टूटा हुआ लाकडाउन ☆
स्थितियो को यथावत स्वीकार कर लेने का सुख ही अलग होता है. जिसने भी समर्पण भाव से यथा स्थिति को स्वीकार कर लिया, उसके सारे तनाव उसी पल स्वतः समाप्त हो जाते हैं . जब तक स्वीकारोक्ति नही होती तब तक संघर्ष होता है. थानेदार मार पीट कर अपराधी को स्वीकारोक्ति के लिये मजबूर करता रहता है. जैसे ही अपराधी स्वीकारोक्ति करता है, उसके सरकारी गवाह बनने के चांसेज शुरू हो जाते हैं.
पत्नी से तर्क करके भी कोई जीता है ? पत्नी को स्वीकार कर लीजीये फिर देखिये गृहस्थी की गाड़ी कितनी सुगमता से चलती है.
भगवान के सम्मुख भक्त की स्वीकारोक्ति और समर्पण के बाद भक्त और भगवान के बीच शरणागति का सिद्धांत लागू हो जाता है. भगवान कभी भी शरणागत को निराश नही करते. शरणागत वत्सल भगवान समर्पित भक्त की रक्षा के लिये सदैव तत्पर रहते हैं. विभीषण ने स्वयं को भगवान राम की शरण में समर्पित कर दिया तो श्री राम ने न केवल उसकी रक्षा की वरन उसे लंका का अधिपति ही बना दिया.
नेता जी हर अच्छी बुरी घटना को यथावत न केवल स्वीकार कर लेते हैं बल्कि उसमें से कुछ अच्छा ढ़ूंढ़ निकालने के गुण जानते हैं.टूटा हुआ लाकडाउन हम जैसे उन विमूढ़ लोगों को ही दिखता है, जो केवल टी वी देखते हैं. हमें लगता है कि लाकडाउन वन में ही कोरोना का निवारण हो गया होता यदि सबने हमारी ही तरह पूरे प्राणपन से लाकडाउन का पालन किया होता. किन्तु नेता जी लाकडाउन पांच के बाद भी जनता की प्रशंसा करते नही अघाते. उन्हें स्थितियो को स्वीकार करने की कला आती है. उन्होने आंकड़े ढ़ूंढ़ निकाले हैं, जिनके जरिये वे देश को दुनियां से बेहतर सिद्ध कर देते हैं. वे जनता की प्रशंसा करते हुये कहते हैं कि जनता ने लाकडाउन का पूरी तन्मयता से परिपालन किया. नेता जी की इस स्वीकारोक्ति से जनता खुश हो जाती है, नेता जी को तनाव नही होता. आज नही तो कल इस तरह या उस तरह कोरोना तो निपट ही जायेगा. गलतियां गिनाने से क्या होगा ? जब जिसे जो बेस्ट लगा उसने वह किया, जिसके लिये नेता जी सबकी पीठ थपथपा कर लोगों का मन जीत लेते हैं. उन्हें आगे की लड़ाई का हौसला देते हैं. जिसे वैक्सीन बनाने में रुचि हो वह अपनी कोशिश करे. जिसे जन सेवा करती तस्वीरें खिंचवानी हो वह वैसा कुछ करता रहे. जिसे घपले में रुचि हो वह ठेलम ठेल के इस माहौल में अपनी रुचि के अनुरूप काम कर डाले.
व्यर्थ ही अपना ज्ञान बांटकर, तर्क वितर्क कर, कुढ़ने वाले मुट्ठी भर लोगों की परवाह छोड़ दें तो बहुमत कोरोना से भी समझौता करने वालो का ही है. जब परिस्थिति अपने वश में ही न हो तो उससे जूझ कर तनाव लेने की अपेक्षा उस स्थिति के मजे लेने में ही भलाई है. तो इस कोरोना काल में सकारात्मकता ढ़ूंढ़कर स्थिति को स्वीकार कर लीजीये, योग कीजीये कोरोना से बचिये और प्रसन्न रहिये.
© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८
अच्छा व्यंग