श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक अप्रतिम अध्यात्म पर आधारित विरह गीत “मिले न मुझको मेरे राम”। कविता की प्रथम पंक्ति ही कविता का सार है और शेष है विरह एवं प्रतीक्षा के भाव। इस सर्वोत्कृष्ट रचना के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 51 ☆
☆ कविता – मिले न मुझको मेरे राम ☆
हाथों की लकीरों पर लिखा हुआ उनका नाम।
ना जाने किस जगह मिलेंगे मुझको मेरे राम।
वन उपवन राह निहारी उनका आठो याम
फिरते फिरते नैना हारी मिले न मुझको मेरे राम।
पंछी घोसला बना लिए चुन चुन तिनका सारा।
कैसे बनाऊं आशियाना मिले न मुझको मेरे राम।
व्याकुल हिरनी सी भटकूं करती रही उनका इंतजार।
ढूंढ – ढूंढ ताल तलैया दिखे न मुझको मेरे राम।
सांझ ढले बिरहा की मारी दिनका व्याकुल मन।
अंतस मन लिए शांत बैठी नैनों में समाए राम।
हाथों के लकीरों पर लिखा हुआ उनका नाम।
ना जाने किस जगह मिलेंगे मुझको मेरे राम।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश
सुंदर रचना