डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

( डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तंत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं। आज से आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका मानवीय दृष्टिकोण पर आधारित एक समसामयिक एवं सकारात्मक आलेख  ‘प्राकृतिक असंतुलन का दुष्परिणाम है कोविड-19 : एक गंभीर चेतावनी।)

☆ किसलय की कलम से # 6 ☆

☆ प्राकृतिक असंतुलन का दुष्परिणाम है कोविड-19 : एक गंभीर चेतावनी ☆

(अन्तहीन लालसा को जरूरत में बदलना होगा)

(धैर्य, सावधानी, सद्भावना से ही हारेगा कोविड-19)

कोविड-19 महामारी के चलते आज लोगों का डरे-सहमे होना लाजमी है। वैसे भी जब यमराज हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रहे हों तो घर से बाहर निकलने की कोई बेवकूफी करेगा ही क्यों? जो बाहर निकल रहे हैं उनके लिए तो बस इतना ही कहा जाएगा कि ऊपर वाले की इच्छा के बगैर पत्ता  भी नहीं खरकता फिर घर से बाहर निकलने की बात तो बहुत दूर की है। हमने दूसरी बात यह भी सुनी है कि ईश्वर ने इंसान का सब कुछ तो अपने पास रखा है लेकिन बुद्धि-विवेक इंसान के सुपुर्द कर उसी पर छोड़ दिया है कि अच्छे-बुरे का निर्णय तू ही कर और उसका परिणाम भी खुद भोग। अर्थात जो जैसा करेगा, सो वैसा भरेगा। जिस कारण ईश्वर को दोष देने का प्रश्न ही खड़ा नहीं होता। आजकल यह मजेदार बात आम हो गई है कि ईश्वर तो बाद में देखेगा पहले पुलिस ही घर से बाहर निकलते ही आपके कर्मों का फल दे रही है।

यदि हम मान भी लें कि-

जन्म, विवाह, मरण गति सोई।

जो जस लिखा तहाँ तस होई।।

तब भी बुद्धि-विवेक का सहारा लेकर किये गए सकारात्मक कर्मों से कई अनिष्ट तो कट ही सकते हैं। कहा भी गया है कि आपके कर्म आपका भाग्य बदलने की सामर्थ्य रखते हैं।

  वर्तमान में सरकार द्वारा बताए गए कर्म आपके दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल सकते हैं। कोविड-19 के बनते-बिगड़ते गंभीर हालात को देखते हुए मुझे भी यह बात किसी दृष्टिकोण से गलत नहीं लगती। बहुत पहले सुना था हैजा, प्लेग, चेचक आदि महामारियों से लोग भयाक्रांत हो जाते थे, लेकिन विकास और तकनीकि ने इन बीमारियों का अंत कर दिया, लेकिन आज कोविड-19 नामक वायरस की बीमारी ने सम्पूर्ण विश्व को हिला कर रख दिया है। सच कहें तो उन परिस्थितियों से कहीं ज्यादा। इंसान इंसान के पास आने से कतराने लगा है। आज किसी के द्वारा स्पर्श की गई सामग्री को भी लेने के पहले बुद्धि- विवेक का उपयोग करने वाला आदमी दस बार सोचने लगा है और बड़ी सावधानी के साथ सेनेटेराइज करने के उपरान्त ही कुछ लेता है। आखिर ऐसी नौबत आई ही क्यों? यह संवेदनशील एवं विचारणीय विषय है। इस पर विश्व स्तरीय चिंतन- मनन की आवश्यकता है। इसके पीछे मानव द्वारा प्रकृति तथा अन्य जीव-जंतुओं के साथ खिलवाड़ करना तो नहीं है? हम निजी स्वार्थवश कहीं अपनी सीमाएँ तो नहीं लाँघ रहे हैं?  ‘अति सर्वत्र वर्जयेत्’  हमारे ग्रंथों का ही लघु सूत्र है। हमारी इस अंतहीन लालसा के परिणाम अब सामने आने शुरू हो गए हैं। चिंतन कर अब मान भी लेना चाहिए कि  हम प्रकृति के साथ अत्याचार  करने लगे हैं।

क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा।

पंच रचित अति अधम शरीरा।।

अर्थात पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश एवं पवन रूपी इन पाँच तत्त्वों से ही हमारा यह अधम शरीर और यह संपूर्ण ब्रह्मांड बना है। प्राकृतिक संतुलन हेतु इन तत्त्वों में भी संतुलन का होना परम आवश्यक है। असंतुलन ही विनाश का कारण है, लेकिन यह सामाजिक प्राणी  स्वार्थ लोलुपता में इतना लिप्त होता गया है कि वह इन तत्वों  का संतुलन बनाए रखना ही भूल गया। आज जब ओजोन परत क्षीण हो रही है, जलवायु प्रदूषण बद से बदतर होता जा रहा है। पर्यावरण की सुरक्षा हेतु ठोस कदम नहीं उठाये जा रहे हैं। प्रकृति संतुलन के अहम सहभागी वनस्पति व जीव-जंतुओं को भी हमारे द्वारा नहीं बक्शा जा रहा है? क्या तब भी हम उम्मीद करेंगे कि प्रकृति हमारे स्वास्थ्य व बेहतर जीवन शैली पर ध्यान देगी? एड्स, स्वाइन फ्लू, कोविड-19 जैसे यमराजों को तो एक न एक दिन हमारे दरवाजों पर दस्तक देना ही थी। क्या आज के पहले किसी ने सोचा था कि सारे विश्व के लोग महीनों चूहों जैसे अपने घरों में दुबक कर बैठेंगे? क्या रेल और हवाई जहाज कभी एक जगह खड़े रहेंगे? क्या आवागमन बन्द सा हो जाएगा? लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रखने हेतु आदेशित किया जाएगा, जबकि जीव जगत में मानव को ही सर्वश्रेष्ठ सामाजिक प्राणी माना गया है, फिर यह सब क्यों हुआ? क्या  ऐसा नहीं लग रहा है कि हमारी अपनी दुनिया रुक सी गई है। भला हो सरकार का कि अभी तक खाने के लाले नहीं पड़ने दिए। जरा कल्पना कीजिए यदि यही हालात तीन-चार महीने और रहे तो फिर क्या होगा ? तब हम यह भी जान लें कि आपका  तिजोरियों में भरा पैसा कोई काम आने वाला नहीं है। काम आयेगा तो स्वच्छ जल, स्वच्छ वायु, स्वच्छ वातावरण एवं निर्विकार भोजन। यही वक्त है आत्मचिंतन का। यही वक्त है इंसान को इंसानियत सीखने का। भले ही हम पूरी तरह से विश्व की वर्तमान परिस्थितियाँ नहीं देख पा रहे हैं और विवशता के चलते हमें घर पर रहना पड़ रहा है, लेकिन आप एक बार इसका दूसरा पहलू यह भी देखिए, यह भी जानिये कि आज कुछ ही दिनों में हमारी नदियाँ कितनी निर्मल हो गईं हैं। शहरों में वायु प्रदूषण कितना कम हो गया है। हम आज बिना सैलून, ब्यूटी पार्लर, धोबी, कामवाली, मनपसन्द सब्जियाँ, बिना मांसाहार, बिना आवागमन अर्थात बिना डीजल-पेट्रोल के भी इतने दिन गुजार सकते हैं। शायद आपने इनके अभाव में जीवन जीने  का कभी सोचा भी नहीं होगा। आज भले ही हम कोविड-19 को लेकर जोक्स बनाकर खुद को हँसा रहे हैं, बहला रहे हैं और इस बीमारी से स्वयं को सुरक्षित मान रहे हैं, लेकिन मोहल्ले या वार्ड में किसी को संक्रमित देखकर  भयभीत भी हो रहे हैं।

आज यह बताना भी आवश्यक है की जरा सी असावधानी हमें बहुत महँगी पड़ सकती है। संयोगवश ही सही हमारी सतर्कता हमें सुरक्षित भी रख सकती है। तब हमें अपने धैर्य, सावधानी और स्वविवेक से कोविड-19 के संक्रमण से स्वयं और दूसरों को भी बचाना होगा।

हम देखते हैं कि लोग मौत के मुँह से भी बाहर आ जाते हैं। चलती ट्रेन के पहियों के बीच से जीवित निकल आते हैं और ऊँचाई से गिरकर भी जिंदा बच जाते हैं। अर्थात हमारी हिम्मत, हमारा विश्वास एवं हमारी सुरक्षित दिनचर्या के साथ ही हमारी प्रतिरोधक क्षमता हमें रोगों को हराने का सामर्थ्य प्रदान करती है। सहस्राब्दियों का इतिहास गवाह है कि जीवन और कालचक्र कभी रुके नहीं, वे निरंतर चलते रहेंगे।

कोविड-19 कितना भी बड़ा राक्षस क्यों न हो, उसे पछाड़ना हमारी पहली प्राथमिकता  होना चाहिए। इसे हराने में कुछ वक्त और लगेगा, तब तक सावधानी ही इस बीमारी से बचने का सर्वोत्कृष्ट उपाय है। लगातार अध्ययन, प्रयोगों तथा शोधों से रामबाण औषधि व प्रतिरोधक टीका बनने में अब देर नहीं है। औषधि बनते ही हम, हमारा देश और पूरा विश्व चैन की साँस ले सकेगा। हम कोविड-19 से मुकाबला करने में सक्षम होंगे, ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है। तब तक धैर्य, सावधानी, सद्भावना व शांति के प्रयासों में निरंतर सहभागी बनें, स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहें।

© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

26 अप्रेल 2020

पता : ‘विसुलोक‘ 2429, मधुवन कालोनी, उखरी रोड, विवेकानंद वार्ड, जबलपुर – 482002 मध्यप्रदेश, भारत
संपर्क : 9425325353
ईमेल : [email protected]

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Vijay Tiwari Kislay

कोविड-19 की स्थिति ऐसी है, जैसे कि कोई व्यक्ति भारी ट्रैफिक में अपनी गाड़ी चला रहा है। दूसरे ट्रैफिक के सभी वाहन उसी की तरफ आ रहे हैं।
यदि आप उन सभी से नहीं बचे तो आपका एक्सीडेंट होना सुनिश्चित है। अब आपको ही तय करना है, क्या करें।
सावधानी ही कोविड-19 से बचने का सही उपाय है।
आलेख प्रकाशन हेतु बधाई।