श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है। सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक एवं भावप्रवण रचना “हम तो मजदूर हैं ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #2 ☆
☆ हम तो मजदूर हैं ☆
निकल पड़े हैं हम सड़कों पे
मंज़िल अभी दूर है
हम तो मजदूर है
लगे हुए है काम पर ताले
कैसे अपना पेट पाले
जमा पूंजी सब खत्म हो गई
भूख हमपे हावी हो गई
संगी साथी सब बेचैन हैं
कट रही आंखों में रैन हैं
थक हार कर सब चूर हैं
हम तो मजदूर हैं
सर पर गठ़री, गोद में बच्चा
आंख में आंसू, कमर में लच्छा
ऐंठती आंतें, रूकती सांसें
भटक रहे हैं, भूखे प्यासे
तपती धूप, झूलसते पांव
आंखें ढ़ूंढ रही है छांव
प्रवासी होना क्या कसूर है ?
हम तो मजदूर हैं
मौत हो गई कितनी सस्ती
खाली हो गई मजदूर बस्ती
पैदल,ट्रक, बस या रेलगाड़ी
मजदूर मर रहे बारी-बारी
घड़ियाली आंसू रो रहे हैं
हमको दोष दे रहे हैं
हम असहाय, लाचार, मजबूर हैं
हम तो मजदूर हैं
मंदिर, मस्जिद, गिरजे, गुरूद्वारे
बंद पड़े हैं अब तो सारे
किसको हम फरियाद सुनायें
किसको अपना दर्द बतायें
भूल गया है शाय़द अफ़सर
जीवन का अंतिम ठिकाना
राजा हो या रंक
मरकर सबको वहीं है जाना
जीवन-मृत्यु के दो-राहे पर
हम खड़े बेकसूर हैं
हम तो मजदूर हैं
हां भाई! हम तो मजदूर हैं
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)
मो 9425592588
26/06/2020