श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  शब्दों पर आधारित अप्रतिम  “ सिद्धेश्वरी के दोहे   ।   इस सर्वोत्कृष्ट  प्रयास  के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 55 ☆

☆ सिद्धेश्वरी के दोहे 

 

1. भूकंप 

आया भूकंप  धरती फटी, मची त्राहि-त्राहि

सहे प्रकृति का कोप सब, समय सूझे कुछ नाहि

 

2.कुटिया

कहे कबीर कुटिया भली, भवन महल अटारी

दो गज जमीन सोइये, मीठी नींद सवारी

 

3.चौपाल

चौपालों में बैठ दादा, कहते राम कहानी

राज छोड़ वनवास गये, कैकयी टेढ़ी जबानी

 

4.नवतपा

नवतपा की ताप बहुत, हाहाकार मचाय

भरी दोपहरी न निकले, शरीर अपने बचाय

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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डॉ भावना शुक्ल

उत्तम दोहे

Shyam Khaparde

अच्छी रचना