सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी “ग़ज़ल ”। यह कविता आपकी पुस्तक एक शमां हरदम जलती है से उद्धृत है। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 42 ☆
प्यासी रूह को मुकम्मल करे ऐसा मुनफ़रिद सुराग है यह
यूं फूंककर हवाओं से न बुझाओ कि जलता चराग है यह
कांपते दिल को दे जो सुकून, तड़पते लबों को आराम
समझो तो कुछ भी नहीं, समझो तो दहकती आग है यह!
वैसे भी बुझाए कहाँ बुझे हैं मोहब्बत के जलते शोले?
धधकती हुई लौ दिल में छुपाये सुलगता अलाव है यह!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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अच्छी रचना