श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है। सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक एवं भावप्रवण रचना “वर्षा ऋतु ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #3 ☆
☆ वर्षा ऋतु ☆
वर्षा की ऋतु आई
झुलसाती गर्मी से राहत पाई
तन-मन ने ली अंगड़ाई
हर चेहरे पर मुस्कान लायी
अंबर में बादलों में
हो रहीं हैं जंग
कर्णभेदी गर्जना से
शांति हो रही भंग
चपल तड़ित क्षण में
कर रही है दंग
वर्षा ऋतु की आहट पाकर
फड़क रहे हैं अंग
वसुंधरा है प्यासी प्यासी
तरूवर पर है छायी उदासी
व्याकुल है हर धरती वासी
मेघों! टपकाओ बूंदें जरासी
यूँ ही कब तक तड़पाओगे
काली घटाएं कब लाओगे
बोलो! तुम कब आओगे
धरती पर पानी कब बरसाओगे
हे मेघों! तुमको है वंदन
तोड़के आओ सारे बंधन
लंबी-लंबी झड़ी लगाओ
टूट टूट कर पानी बरसाओं
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)
मो 9425592588
26/06/2020