सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना “मैं जुगनू बन गई हूँ ”। यह कविता आपकी पुस्तक एक शमां हरदम जलती है से उद्धृत है। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 43 ☆
अपने चारों ओर रौशनी के लिए
एक दिया मैंने जलाया,
उसमें कई रात जागते हुए
तेल डाला,
हवाओं से वो बुझ न जाए
यह सोच अपने हाथों से हवाओं को रोका-
पर फिर भी
नहीं बचा पायी उसे
तेज आंधी से
और वो बुझ गया…
सूरज से रौशनी उधार मांगी,
पर कहाँ टिकती है उधारी की चीज़?
चाँद से कहा
वो मुझे जगमगाए
पर मुझपर अमावस छा गयी
और सितारों की रौशनी में
वो दम न था
कि मुझे रौशन कर सके…
जब हर तरफ से हार गयी
तो मैंने अपनी रूह को
जुगनू बना दिया
और अब मुझे कभी
रौशनी की ज़रूरत नहीं होती…
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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“तो मैंने अपनी रूह को जुगनूँ बना दिया”
अच्छी भावाभिव्यक्ति है नीलम जी।
– किसलय
जबलपुर
सुंदर रचना