सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज  नौवीं कड़ी में प्रस्तुत है “बहू की नौकरी ”  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

Amazon Link for eBook :  सकारात्मक सपने

 

Kobo Link for eBook        : सकारात्मक सपने

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 9 ☆

 

☆ बहू की नौकरी ☆

 

विवाह के बाद बहू को नौकरी करना चाहिये या नही यह वर्तमान युवा पीढ़ी की एक बड़ी समस्या है. बहू नौकरी करेगी या नहीं, निश्चित ही यह बहू को स्वयं ही तय करना चाहिये. प्रश्न है,विचारणीय मुद्दे क्या हों ? इन दिनो समाज में लड़कियों की शिक्षा का एक पूरी तरह गलत उद्देश्य धनोपार्जन ही लगाया जाने लगा है, विवाह के बाद यदि घर की सुढ़ृड़ आर्थिक स्थिति के चलते ससुराल के लोग बहू को नौकरी न करने की सलाह देते हैं तो स्वयं बहू और उसके परिवार के लोग इसे दकियानूसी मानते है व बहू की आत्मनिर्भरता पर कुठाराघात समझते हैं, यह सोच पूरी तरह सही नही है.

शिक्षा का उद्देश्य केवल अर्थोपार्जन नही होता. शिक्षा संस्कार देती है. विशेष रूप से लड़कियो की शिक्षा से समूची आगामी पीढ़ी संस्कारवान बनती है. बहू की शिक्षा उसे आत्मनिर्भरता की क्षमता देती है, पर इसका उपयोग उसे तभी करना चाहिये जब परिवार को उसकी जरूरत हो. अन्यथा बहुओ की नौकरी से स्वयं वे ही प्रकृति प्रदत्त अपने प्रेम, वात्सल्य, नारी सुलभ गुणो से समझौते कर व्यर्थ ही थोड़ा सा अर्थोपार्जन करती हैं. साथ ही इस तरह अनजाने में ही वे किसी एक पुरुष की नौकरी पर कब्जा कर उसे नौकरी से वंचित कर देती हैं. इसके समाज में दीर्घगामी दुष्परिणाम हो रहे हैं, रोजगार की समस्या उनमें से एक है दम्पतियो की नौकरी से परिवारो का बिखराव, पति पत्नी में ईगो क्लैश, विवाहेतर संबंध जैसी कठिनाईयां पनप रही हैं. नौकरी के साथ साथ पत्नी पर घर की ज्यादातर जिम्मेवारी, जो एक गृहणी की होती है, वह भी महिला को उठानी ही पड़ती है इससे परिवार में तनाव, बच्चो पर पूरा ध्यान न दे पाने की समस्या, दोहरी मेहनत से स्त्री की सेहत पर बुरा असर आदि मुश्किलो से नई पीढ़ी गुजर रही है. अतः बहुओ की नौकरी के मामले में मायके व ससुराल दोनो पक्षों के बड़े बुजुर्गो को व पति को सही सलाह देना चाहिये व किसी तरह की जोर जबरदस्ती नही की जानी चाहिये पर निर्णय स्वयं बहू को बहुत सोच समझ कर लेना चाहिये.

 

© अनुभा श्रीवास्तव

 

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments