श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की छठवीं कड़ी में उनकी एक सार्थक कविता “बेनाम होने का सुख ”। अब आप प्रत्येक सोमवार उनकी साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य #6 ☆
☆ बेनाम होने का सुख ☆
देखते ही देखते
ये क्या हो गया ,
जब तुम घर में थे
घर के मुन्ना लाल थे ,
देखते ही देखते
ये क्या हो गया
राह में तुम्हें राहगीर
भी कह दिया गया
आफिस पहुँचे तो
कर्मचारी बन गए।
देखते ही देखते
ये क्या हो गया
बस में सवार हुए
तो यात्री बन गए
प्रेम जैसे ही किया
प्रेमी का खिताब मिला।
देखते देखते ये क्या हुआ
जब खेत खलिहान पहुँचे
सबने किसान का दर्जा दिया
बेटे के स्कूल दाखिले में
अचानक पिता बना दिया
देखते देखते ये क्या हुआ
पत्नी ने धीरे से पति कह दिया
मंदिर में घंटा बजाते हुए
पुजारी ने भक्त कह दिया
देखते देखते इतना सब हुआ
बेनाम होने का भी सुख मिला
© जय प्रकाश पाण्डेय