डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं समसामयिक गीत “सावन ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 55 – साहित्य निकुंज ☆
☆ सावन ☆
सावन में मनवा बहक बहक जाए।
पिया की याद मोहे बहुत ही सताए ।
हरे भरे मौसम में मनवा गीत गाए।
पिया की याद मोहे बहुत ही सताये।
कंगना भी बोले, झुमका भी डोले।
पायल भी बोले, बिछुआ भी बोले।
हिया मोरा तुझसे मिलने को तरसे।
मन मोरा पिया बस डोले ही डोले।
पिया की याद मोहे बहुत ही सताये।
रिमझिम -रिमझिम वो बूंदे बौछारे ।
मनवा में छाई उमंग की फुहारें ।
बावरा मन मोरा मिलने को तरसे।
प्रीत का रंग छाया मन के ही द्वारें।
पिया की याद मोहे बहुत ही सताये।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120, नोएडा (यू.पी )- 201307
मोब 9278720311 ईमेल : [email protected]
अच्छी रचना
Beautiful
Badhiya bhav Bhavna di के
सावन गीत की उद्दीपन विभाव के रूप में प्रस्तुति मोहक और ह्रदय स्पर्शी है। सरल एवं सहज शब्दों के कारण गीत में और अधिक संवेदनशीलता आ गई है।