(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक समसामयिक व्यंग्य गुड गोबर न होय। इस अत्यंत सार्थक व्यंग्य के लिए श्री विवेक जी का हार्दिक आभार। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 66 ☆
☆ व्यंग्य – गुड गोबर न होय ☆
कहावत है कि लकड़ी की काठी बार-बार चूल्हे पर नहीं चढ़ती पर वह नेता ही क्या जो कहावतों का कहा मान ले। मेहनत से क्या नहीं हो सकता? लीक के फकीर तो सभी होते हैं ।पर वास्तविक नेतृत्व वही देता है, जो स्वयं अपनी राह बनाए।
बिहार में लालू जी ने पशुओं के लिए बड़ी मात्रा में चारा खरीदा था, पशु चराने जाने वाले बच्चों के लिए चारागाह में ही विद्यालय खुले थे, कितने बच्चे क्या पढ़े यह तो नहीं पता लेकिन अपने इन अभिनव बिल्कुल नए प्रयोगों से लालू जी चर्चा में आए थे। और इतनी चर्चा में आए थे कि हावर्ड बिजनेस स्कूल ने उन्हें भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया ।
अब जब कोई सरकारी योजना आएगी तो उसे अकेले नेता जी तो क्रियान्वित करेंगे नही।योजना तो होती ही सहभागिता के लिए है।भांति भांति के लोगों के भांति भांति व्यवहार से योजना में घोटाले होते ही हैं।सच तो यह है कि योजना बनते ही उसके लूप होल्स ढूंढ लिए जाते हैं। चारा घोटाला आज भी सुर्खी में है और बेचारे लालू जी जेल में।
कुछ नया, कुछ इनोवेटिव करने की कोशिश में अब छत्तीसगढ़ ने वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने के लिए गोबर की खरीदी का जोर शोर से उद्घाटन किया है। उद्घाटन चल ही रहा है, और विपक्ष टाइप के लोगो को सम्भावित गोबर घोटाले की बू आने लगी है। जिले जिले के कलेक्टर का अमला गोबर का हिसाब रखने के लिए साफ्टवेयर बनाने में जुट रहा है।न भूतो न भविष्यति, आई ए एस बनने वालों ने कभी सोचा भी न रहा होगा कि कभी उन्हें गोबर का भी गूढ़, गुड़ गोबर करना पड़ेगा ।
जब गोबर की सरकारी खरीद होगी तो पशुपालकों के साथ साथ उससे जुड़े कर्मचारियों से शुरू होकर अधिकारियों और नेताओं तक भी गोबर की गंध पहुंचेगी ही।कही गोबर गैस बनकर रोशनी होगी ।जनसंपर्क विभाग उस रोशनी को अखबारों में परोस देगा।शायद नेता जी को व्याख्यान के लिए, पुरस्कार के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय आमंत्रण मिल जाये।गोबर में बिना हड्डी के बड़े छोटे केचुए पनपेंगे जो मजे में अफसरों और नेता जी के बटुए में समा जाएंगे।वर्मी कम्पोजड खाद होती ही सोना है।सो गोबर से सोना बनेगा।
जहां केचुए एडजस्ट नही हो पाएंगे वही गोबर से घोटाले की दुर्गंध आएगी यह तय समझिये।
हम तो यही कामना कर सकते हैं कि योजना का गुड़ गोबर न होने पाए।पशुपालन को सच्ची मुच्ची बढ़ावा मिल सके, खेती को ऑर्गेनिक खाद मिले, और योजना सफल हो।यद्यपि पुराने रिकार्ड कहते हैं कि जँह जँह पाँव पड़े नेतन के तँह तँह बंटाधार।चारा घोटाला पुरानी बात हुई पर अब गोबर धन पर काली नजर न लगे।
© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८
अच्छी रचना