श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”)

☆ श्री कृष्ण जन्माष्टमी विशेष ‘संजय उवाच’ – कृष्णनीति ☆

जीवन अखंड संघर्ष है। इस संघर्ष के पात्रों को प्रवृत्ति के आधार पर दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है, भाग लेनेवाले और भाग लेनेवाले। एक संघर्ष में भाग लेता है, दूसरा संघर्ष से भाग लेता है। बिरला कोई रणनीतिकार होता है जो भाग लेने के लिए सृष्टि के हित में भाग लेता है। ऐसा रणनीतिकार कालजयी होता है। ऐसा रणनीतिकार संयोग से नहीं अपितु परम योग से बनता है। अत: योगेश्वर कहलाता है।

योगेश्वर श्रीकृष्ण के वध के लिए जरासंध ने  कालयवन को भेजा। विशिष्ट वरदान के चलते कालयवन को परास्त करना सहज संभव न था। शूरवीर मधुसूदन युद्ध के क्षेत्र से कुछ यों निकले कि कालयवन को लगा, वे पलायन कर रहे हैं। उसने भगवान का पीछा करना शुरू कर दिया।

कालयवन को दौड़ाते-छकाते श्रीकृष्ण उसे उस गुफा तक ले गए जिसमें ऋषि मुचुकुंद तपस्या कर रहे थे। अपनी पीताम्बरी ऋषि पर डाल दी। उन्माद में कालयवन ने ऋषिवर को ही लात मार दी। विवश होकर ऋषि को चक्षु खोलने पड़े और कालयवन भस्म हो गया। साक्षात योगेश्वर की साक्षी में ज्ञान के सम्मुख  अहंकार को भस्म तो होना ही था।

कृष्ण स्वार्थ के लिए नहीं सर्वार्थ के लिए लड़ रहे थे। यह ‘सर्व’ समष्टि से तात्पर्य रखता है। यही कारण था कि रणकर्कश ने समष्टि के हित में रणछोड़ होना स्वीकार किया।

भगवान भलीभाँति जानते थे कि आज तो येन केन प्रकारेण वे असुरी शक्ति से लोहा ले लेंगे पर कालांतर में जब वे पार्थिव रूप में धरा पर नहीं होंगे और इसी तरह के आक्रमण होंगे तब प्रजा का क्या होगा? ऋषि मुचुकुंद को जगाकर कृष्ण आमजन में अंतर्निहित सद्प्रवृत्तियों को जगा रहे थे, किसी कृष्ण की प्रतीक्षा की अपेक्षा सद्प्रवृत्तियों की असीम शक्ति का दर्शन करवा रहे थे।

स्मरण रहे, दुर्जनों की सक्रियता नहीं अपितु सज्जनों की निष्क्रियता समाज के लिए अधिक घातक सिद्ध होती है। कृष्ण ने सद्शक्ति की लौ समाज में जागृत की।

प्रश्न है कि कृष्णनीति की इस लौ को अखंड रखने के लिए हम क्या कर रहे हैं? हमारी आहुति स्वार्थ के लिए है या सर्वार्थ के लिए? विवेचन अपना-अपना है, निष्कर्ष भी अपना-अपना ही होगा।

© संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

image_print
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

10 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
सुशील कुमार तिवारी

सच बात है कि हमें अपने आप को जागृत करना है तभी उसे परास्त किया जा सकता है ।

Sanjay k Bhardwaj

धन्यवाद आदरणीय।

अवनीश कुमार

अत्यंत सुंदर व विचारोत्तेजक आलेख।

सच है, सज्जनों की निष्क्रियता सही मायनों में एक सामाजिक अभिशाप ही है और अनेकों बार नई संभावनाओं के जन्म लेने की राह में बाधक बन जाती है।

Sanjay k Bhardwaj

प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद अवनीश जी।

वीनु जमुआर

क्षितिज की संस्थापिका सुधा भारद्वाज के स्वर से आरंभ हुए संजय उवाच की इस श्रृंखला में-
जीवन अखंड संघर्ष…संघर्ष ‘से’ भाग लेना, संघर्ष ‘में’ भाग लेना..सहज सरल भाव से कही गई योगेश्वर की कथा.. ज्ञान के सम्मुख अहंकार का भस्म होना आदि का समावेश तो है ही, ऋषि मुचुकुंद के संदर्भ द्वारा सत् प्रवृत्तियों को जगाने की बात और अंत में दुर्जनों की सक्रियता नहीं सज्जनों की निष्क्रियता समाज के लिए घातक होती है..अर्थात सत्कर्म की ओर संकेत! प्रेरणादायी मनन चिंतन योग्य कथन ! अभिनंदन संजय जी एवं क्षितिज ।?

Sanjay k Bhardwaj

विस्तृत एवं गहन प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद आदरणीय।

Rita Singh

सुंदर और फिर एक बार मार्गदर्शन मिला।कृष्ण के जलाए लौ को हमें अपने भीतर जलाए रखना है। यही तो कृष्ण कॉनशियस कहलाता है।

Sanjay k Bhardwaj

प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद आदरणीय।

अलका अग्रवाल

महायोगी श्रीकृष्ण ने समष्टि की भलाई के लिए रणछोड़ होना स्वीकार किया।सज्जनों की निष्क्रियता समाज के लिए अधिक घातक है न कि दुर्जनों की सक्रियता।अभिनंदन संजय जी।

Sanjay k Bhardwaj

प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद
आदरणीय।