श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “ऑफिसियल भाषा…..।” यह रचना ऑफिस या कार्यालय के कार्यप्रणाली , मनोविज्ञान और भाषा और का सार्थक विश्लेषण करती है । इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ऑफिसियल भाषा# 30
समय के साथ व्यक्ति के व्यवहार का बदलना कोई नयी बात नहीं है; परिवर्तन तो प्रकृति भी करती है ; तभी तो दिन रात होते हैं , पतझड़ से हरियाली ; फिर अपने चरम उत्कर्ष पर बहारों का मौसम ये सब हमें सिखाते हैं, समय के साथ बदलना सीखो, भागना और भगाना सीखो, सुधरना और सुधारना सीखो , बैठो और बैठाना सीखो ।
अब राधे लाल जी को ही देखिए जब तक काम करते रहो तब तक वो सिर पर बैठाते हैं और जैसे ही सलाह देने की हिमाकत की तो तुरंत यू टर्न लेते हुए घर बैठो की बात पर उतर आते हैं ; जिससे सारे लोग मन ही मन उनसे खफा रहते हैं । पर क्या किया जाय जो नेतृत्व करेगा उसे तो कठोर होना ही पड़ेगा अन्यथा सभी ज्ञान योगी बन कर ज्ञान बाटेंगे तो कार्य कैसे पूरे होंगे ।
एक दिन की बात है; मीटिंग चल रही थी, लोगों का ध्यान प्रोजेक्ट पर कम इस बात पर ज्यादा था कि लंच में क्या- क्या पकवान रखे गए हैं । प्रोजेक्ट हेड ने प्रश्न पूछा तो विनीता मैम अनमने मन से कुछ और बोल गयीं जिससे वहाँ बैठे अन्य लोग हँसने लगे तो हेड बॉस ने भड़कते हुए कहा भागिए यहाँ से , जो भागता नहीं उसे मैं भगाना भी जानता हूँ ।
अब तो मैडम जी ने आव देखा न ताव उठकर चल दीं । लोगों ने उन्हें रोका फिर एक अन्य महिला कर्मी ने जो अपने आप को कंपनी की प्रवक्ता मानती हैं , उन्होंने समझाया दरसअल सर का उद्देश्य स्पीड से है, आप भी समय के साथ तेजी से भागिए यदि नहीं भाग सकतीं तो सर आपको भागना भी सिखा देंगे और आप गलत समझ बैठी तब विनीता जी ने भी बेमन से हाँ में हाँ मिलाते हुए हाँ ऐसा ही होगा मैं ही न समझ हूँ ऑफिसियल भाषा समझने में जरा कच्ची हूँ ; वो तो भला हो आपका जो आपने मेरी नौकरी बचा ली अन्यथा घर बैठना पड़ता ।
ये तो आये दिन की बात हो गयी थी हेड बॉस जमकर अपशब्दों का प्रयोग करते और लोग भी मजबूरी में काम करते रहते ,लोगों को उनके टारगेट पूरा करने के बहाने बहुत प्रताड़ित किया जाता । जब पानी सर से ऊपर जाने लगता है ; तो लोग हाथ पैर मारते ही हैं सो सभी कर्मचारियों ने एकजुट होकर एक सुर में कहा आप ऑफिसियल भाषा के नाम पर अपमान नहीं कर सकते आपको अपना व्यवहार बदलना होगा तभी हम लोग काम करेंगे अन्यथा नहीं ।
जब ये बात ऊपर तक पहुँची तो बड़े सर आये उन्होंने स्नेहिल शब्दों से सबका दिल जीत लिया ।
ये सारे ही शब्द अगर हम क्रोध के वशीभूत होकर सुनेंगे तो इनका अर्थ कुछ और ही होगा किंतु यदि सकारात्मक विचारधारा से युक्त परिवेश में कोई इसे सुने तो उसे इसमें सुखद संदेश दिखाई देगा ।
जैसे भागना का अर्थ केवल जिम्मेदारी से मुख मोड़ कर चले जाना नहीं होता अपितु समय के साथ तेज चलना, दौड़ना,भागना और औरों को भी भगाना ।
सबको प्रेरित करें कि अभी समय है सुधरने का , जब जागो तभी सवेरा, इस मुहावरे को स्वीकार कर अपनी क्षमता अनुसार एक जगह केंद्रित हो कार्य करें तभी सफलता मिलेगी ।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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