सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  प्राकृतिक पृष्टभूमि में रचित एक अतिसुन्दर भावप्रवण  कविता  “कोरोना अपने घर जाओ ना!। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 43 ☆

कोरोना अपने घर जाओ ना!

बात पते की आज कह रहे

तुम घर वापस जाओ ना!

छह महिनों से  यहाँ टिके हो

कोरोना अपने घर जाओ ना!

 

बहुत दिनों से टिके हुए हो

काफी मिट्टी खोद चुके हो

आर्थिक सीमाओं की चट्टान

गरदन मरोड़ के तोड़ चुके हो।

 

कितना दुष्कर्म कर रहे हो

दुर्बल को ही छल रहे हो।

चुपके से गलियों में उसकी

बेवजह क्यों घूम रहे हो?

 

कैसा नरसंहार मचा रखा है?

उम्र का कोई लिहाज नहीं है

बुढ़ा- बच्चा, जवान न देखो

गर्भवती को ना छोड़ रहे हो।

 

गरीब हमारी जनता सारी

पाई पाई को मोहताज हुई है

सबके पेट में लात मारकर

छाती पर तुम मूँग दल रहे हो।

 

क्या तुम्हारी धरती तुमको

क्यों पुकार नहीं रहीं है?

जहाँ से आए हो तुम अब

वापस घर जाओ ना…

कोरोना अपने घर जाओ ना!

 

© सुजाता काळे

7/7/20

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोबाईल 9975577684

[email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
2 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Shyam Khaparde

अच्छी रचना