डॉ कुन्दन सिंह परिहार
बाबूलाल को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ धर लिया गया है। अब बाबूलाल धीरज की मूर्ति बना, मौन,थाने में बैठा है। आसपास पुलिस वाले घूम रहे हैं।
सामने वाली कुर्सी पर बैठा दरोगा कहता है, ‘अब तुम गये काम से। जेल जाना पक्का है।’
बाबूलाल सहमति में सिर हिलाता है।
दरोगा पूछता है, ‘तुम्हें डर नहीं लगता?’
बाबूलाल ज्ञानी की नाईं कहता है, ‘डरने से क्या होने वाला है? जैसा किया है वैसा भोगेंगे।’
दरोगा कुछ मायूस हो जाता है। थोड़ी देर मौन रहने के बाद जाँघ पर हाथ पटककर जोर-जोर से हँसने लगता है। बाबूलाल आश्चर्य से उसे देखता है।
हँसी रुकने पर दरोगा कहता है, ‘कुच्छ नहीं होगा। बेफिकर रहो। तुम दूध के धुले साबित होगे।’
बाबूलाल मुँह बाये उसकी तरफ देखता है।
दरोगा कहता है, ‘सब परमान-सबूत तो हमारे पास ही हैं न। हम बड़े बड़े केसों का खात्मा अपने लेविल पर कर देते हैं। हम कहेंगे कि सबूत पर्याप्त नहीं हैं।’ वह फिर ताली पीट कर हँसने लगता है।
बाबूलाल पूछता है, ‘यह कैसे होगा?’
दरोगा जवाब देता है, ‘रोज होता है। कुछ पैसे का त्याग करोगे तो तुम्हारे केस में भी हो जाएगा।’
बाबूलाल थोड़ी देर सोचता है, फिर कहता है, ‘लेकिन यह ठीक नहीं होगा।’
अब दरोगा अचरज में है। पूछता है, ‘क्यों ठीक नहीं होगा?’
बाबूलाल कहता है, ‘हम जीवन भर ईमानदार रहे। सिर्फ इसी बार हमारी बुद्धि भ्रष्ट हो गयी। हम भ्रष्ट तो हो गये, लेकिन अब हम झूठे और बेईमान नहीं होना चाहते। हम अपने किये की सजा भुगतेंगे।’
दरोगा अपने बाल नोचने लगता है, कहता है, ‘तुम पागल हो। हमारी बात मानोगे तो तुम बच जाओगे और हमें भी अपने पेट के लिए तुमसे दो पैसे मिल जाएंगे।’
बाबूलाल असहमति में सिर हिलाता है, कहता है, ‘नईं दरोगा जी,हमसे एक पाप हो गया, दूसरा नईं करेंगे। आप अपना काम करो ।हम सजा के लिए तैयार हैं। झूठ नहीं बोलेंगे।’
दरोगा माथा पीट कर कहता है, ‘ससुरा सनकी कहीं का!’ फिर सिपाहियों की तरफ देखकर कहता है, ‘कुछ लोग ऐसे होते हैं कि दूसरे का नुकसान करने के लिए अपना सिर कटवा दें। खुद मरें और दूसरे को भी नरक में ढकेलते जाएं।’
© डॉ. कुन्दन सिंह परिहार , जबलपुर (म. प्र. )