(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक विचारणीय आलेख साहित्य की चोरी और पुरस्कार की भूख। आलेख का शीर्षक ही साहित्यिक समाज में एक अक्षम्य अपराध / रोग को उजागर करता है। ऐसे विषय पर बेबाक रे रखने के लिए श्री विवेक रंजन जी का हार्दिक आभार। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 70 ☆
☆ साहित्य की चोरी और पुरस्कार की भूख ☆
जो सो रहा हो उसे जगाया जा सकता है, पर जो सोने का नाटक कर रहा हो उसे नहीं ।
अनेक लोगो को मैंने देखा सुना है जो बहुचर्चित रचनाओं विशेष रूप से कविता, शेर, गजलों को बेधड़क बिना मूल रचनाकार का उल्लेख किये उद्धृत करते हैं, कई दफा ऐसे जैसे वह उनकी रचना हो।
विलोम में कुछ लोग अपने कथन का प्रभाव जमाने के लिए सुप्रसिद्ध रचनाकार के नाम से उसे पोस्ट करते हैं। व्हाट्सएप, कम्प्यूटर ने यह बीमारी बधाई है, क्योंकि कट, कॉपी, पेस्ट और फारवर्ड की सुविधाएं हैं।
अनेक शातिराना लोगों को जो स्वयं अपने, अपनी पत्नी बच्चों के नाम से धड़ाधड़ लिखते दिखाई देते हैं उनके पास मौलिक चिंतन का वैचारिक अभाव होता है। वे आगामी जयन्ती, पुण्यतिथि के कैलेंडर के अनुसार 4 दिनों पहले ही चुराये गये उधार के विचारों को,शब्द योजना बदलकर सम्प्रेषित करते हैं। अखबार को भी सामयिक सामग्री चाहिए ही, सो वे छप भी जाते हैं, मांग कर, जुगाड़ से पुरस्कार भी पा ही जाते हैं, ऐसे लोगो को सुधारना मुश्किल है। कई दफा जल्दबाजी में ये सीधी चोरी कर लेते हैं व पकड़े जाते हैं। यह साहित्य के लिए दुखद है।
साफ सुथरा पुरस्कार सम्मान रचनाकार को आंतरिक ऊर्जा देता है। यह उसे साहित्य जगत में स्वीकार्यता देता है।
किंतु आदर्श स्थिति में ध्येय पुरस्कार नही लेखन होना चाहिए, पर आज समाज मे हर तरफ नैतिक पतन है, साहित्य में भी यह स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है। ऐसे लोगो को सुधारना मुश्किल काम है।
यू मैं तो यह मानता हूं कि ऐसी हरकतें सोशल मिडीया के इस समय मे छिपती नही है, और जब सब उजागर होता है तब सम्मानित व्यक्ति के प्रति श्रद्धा की जगह दया हास्य व वितृष्णा का भाव पनपने में देर नही लगती, अतः सही रस्ता ही पकड़ने की जरूरत है, सम्मान पाठकों के दिल मे लेखन की गुणवत्ता से ही बनता है।
सद विचार पंछी हैं उनका जितना विस्तार हो अच्छा है।
© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈