प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी की एक ग़ज़ल ये जीवन है आसान नही। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 7 ☆
☆ ये जीवन है आसान नही ☆
ये जीवन है आसान नही जीने को झगड़ना पड़ता है
चलने को गलीचो पे पहले तलवो को रगड़ना पड़ता है
मन के भावो औ चाहो को दुनिया ने किसी के कब समझा
कुछ खोकर भी कुछ पाने को दर दर पै भटकना पड़ता है
सर्दी की चुभन गर्मी की जलन बरसात का बेढ़ब गीलापन
आघात यहां हर मौसम का हर एक को सहना पड़ता है
सपनो में सजाई गई दुनियां इस दुनिया में मिलती कम को
अरमान लिये बेमन से भी संसार में चलना पड़ता है
देखा है बहारो में भी यहां कई फूल कली मुरझा जाते
जीने के लिये औरो से तो क्या खुद से भी तो लड़ना पड़ता है
तर हो के पसीने से बेहद अवसर को पकड़ पाने के लिये
छूकर के भी न पाने की कसक से कई को तड़पना पड़ता है
वे हैं विदग्ध किस्मत वाले जो मन माफिक पा जाते हैं
वरना ऐसे भी कम हैं नहीं जिन्हें बन के बिगड़ना पड़ता है
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈