हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 20 ☆ कहो जीवन की जय ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण कविता कहो जीवन की जय )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 20 ☆ 

☆ कहो जीवन की जय ☆ 

 

धरती माता विपदाओं से डरी नहीं

मुस्काती है जीत उन्हें यह मरी नहीं

आसमान ने नीली छत सिर पर तानी

तूफां-बिजली हार गये यह फटी नहीं

अग्नि पचाती भोजन, जला रही अब भी

बुझ-बुझ जलती लेकिन किंचित् थकी नहीं

पवन बह रहा, साँस भले थम जाती हो

प्रात समीरण प्राण फूँकते थमी नहीं

सलिल प्रवाहित कलकल निर्मल तृषा बुझा

नेह नर्मदा प्रवहित किंचित् रुकी नहीं

पंचतत्व निर्मित मानव भयभीत हुआ?

अमृत पुत्र के जीते जी यम जीत गया?

हार गया क्या प्रलयंकर का भक्त कहो?

भीत हुई रणचंडी पुत्री? सत्य न हो

जान हथेली पर लेकर चलनेवाले

आन हेतु हँसकर मस्तक देनेवाले

हाय! तुच्छ कोरोना के आगे हारे

स्यापा करते हाथ हाथ पर धर सारे

धीरज-धर्म परखने का है समय यही

प्राण चेतना ज्योति अगर निष्कंप रही

सच मानो मावस में दीवाली होगी

श्वास आस की रास बिरजवाली होगी

बमभोले जयकार लगाओ, डरो नहीं

हो भयभीत बिना मारे ही मरो नहीं

जीव बनो संजीव, कहो जीवन की जय

गौरैया सँग उषा वंदना कर निर्भय

प्राची पर आलोक लिये है अरुण हँसो

पुष्पा के गालों पर अर्णव लाल लखो

मृत्युंजय बन जीवन की जयकार करो

महाकाल के वंशज, जीवन ज्वाल वरो।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

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