डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपका एक भावप्रवण गीत  “मेघ । ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 62 – साहित्य निकुंज ☆

☆ गीत – मेघ ☆

मेघा छाए काले काले

क्यों नहीं बरस जाते हो।

हर पल वो तो प्यास बुझाते।

क्यों नहीं दरस दिखाते हो।

मेघा..

 

उमड़ घुमड़ कर आते वे तो

सबकी खुशियां लाते है।

उदास किसान करते दुआएं

गीत बारिश के गाते है।

मेघा…

 

रस्ता देखे हम भी इनका

गरज गरज के जाते हो।

कब आओगे तरसे नयना

दुख ही दुख दे जाते हो।

मेघा..

 

ताल तलैया झील भी सूखी

नदिया सूखी जाती है।

नहीं बची है इनकी सांसे

क्यों नहीं  बरस  तुम जाते हो।

मेघा..

 

आस लगाए कब से बैठे

पानी कब बरसाओगे।

धरती को तर्पण कर दो

आकार कब हर्षाओगे।

मेघा छाए….

 

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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