श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “पड़ेगी गांठ चुभती उम्र भर “)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 102 ☆

✍ पड़ेगी गांठ चुभती उम्र भर… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

जरा सी चोट लगते प्रेम धागा टूट जाता है

वफ़ा में खोट आते दिल का शीशा टूट जाता है

*

पड़ेगी गांठ चुभती उम्र भर जो जोड़कर फिर से

किसी इंसा से जब इंसा का रिश्ता टूट जाता है

*

समझ के साथ बढ़ता आदमी का नजरिया सच है

लुटा समझे जो बच्चे का खिलौना टूट जाता है

*

गुनाहों की सज़ा मुजरिम को दो रोको ये बुलडोजर

भुगतता है घराना जब घरौदा टूट जाता है

*

बड़ी जब शख्सियत कोई जहां से कूच है करती

फ़लक से लोग कहते हैं सितारा टूट जाता है

*

दिलों में फासला होता दिखावा करना जो कर लो

किसी का जब किसी पर से भरोसा टूट जाता है

*

ये मेरी बद नसीबी का सितम भी देखिये साहिब

जो साक़ी भेजती मुझको वो प्याला टूट जाता है

*

बचाना जिसको वो चाहे उसे फिर कौन मारेगा

शिकारी जो भी फैलाये वो फंदा टूट जाता है

*

शरीफों के लिए घर में लगाया जाता है इनको

हो कोई चोर तो कोई भी ताला टूट जाता है

*

इबादत में अक़ीदत की कसर होगी तो ये समझो

करोगे लाख कोशिश फिर भी रोज़ा टूट जाता है

*

जो तैयारी बिना मैदान में आ पेंच लड़वाओ

उड़ाओगे पतंग ऊँची तो मांजा टूट जाता है

*

अरुण कमजोर कड़ियों पर नजर दुश्मन रखें बचन

रहेगी गर पकड़ कच्ची तो घेरा टूट जाता है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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