श्री विनय माधव गोखले
🤣 हास्य-व्यंग्य 😁
☆ अरे ओ सांबा! ☆ श्री विनय माधव गोखले ☆
अरे ओ सांबा!
(हाथ में साडी लेके टहलते हुए पूछता है…)
सरदार: कितनी औरते थी?
सेल्समन: दो थी सरदार।
सरदार: गधे के बच्चों! वे दो थी और तुम चार! फिर भी बेच नही पाये! बैठे हैं खाली हाथ… क्या समझकर बैठे थे की सरदार बहुत खुस होगा… बोनस देगा क्यूं?? अरे ओ सांबा, कितनी साडियाँ रखी है हमने दुकान के अंदर?
सांबा: पूरी एक हजार…
सरदार: सुना तुमने, पूरी एक हजार!! और ये इतनी सुंदर साडियाँ इसलिये हैं की यहां से पचास-पचास कोस दूर गाँव में जब बेटी रात को साडी के लिये रोती है, तो माँ उसे कहती है –
“मत रो बेटी, मत रो। मत रो, कल गब्बर सिंग की दुकान से ही खरीद लायेंगे।”
और ये चार नालायक… ये गब्बरसिंग का नाम पूरा मिट्टी में मिलाई दिये। इसकी सजा मिलेगी, बराबर मिलेगी!!😡
सरदार एक सेल्समन से पूछता है- कितनी साडियाँ हैं इस ढेर के अंदर??
Salesman: आँ…?
सरदार: कितनी साडियाँ हैं इस ढेर के अंदर??
Salesman: पचास…सरदार!
सरदार: पचास साडी और आदमी चार। बहुत नाइन्साफी है ये।
© विनय माधव गोखले
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈