सुश्री निर्देश निधि

आज प्रस्तुत है हिंदी साहित्य की सशक्त युवा हस्ताक्षर सुश्री निर्देश निधि  जी की कालजयी वैज्ञानिक फंतासी  “शेष विहार ”.

आदरणीय डॉ विजय कुमार मल्होत्रा जी (पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय,भारत सरकार) के शब्दों में “बुलंद शहर (उ.प्र.) की निवासी निर्देश निधि द्वारा लिखित “शेष विहार” पढ़कर मैं न केवल भयाक्रांत हो गया था, बल्कि विचलित भी हो गया था और मैं चाहता था कि इस कहानी को विश्व-भर के पाठक पढ़ें और समय रहते ऐसे उपाय करें जिससे हम अपने इस प्यारे भूमंडल को आसन्न भयानक विभीषिका से बचा सकें.”

ऐसी कालजयी रचना को हमारे विश्वभर के पाठकों  तक पहुंचाने के लिए हम आदरणीय  कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी के सहयोग के लिए ह्रदय से आभारी हैं। कैप्टन प्रवीण रघुवंशी न केवल हिंदी और अंग्रेज़ी में प्रवीण हैं, बल्कि उर्दू और संस्कृत में भी अच्छा-खासा दखल रखते हैं. उन्होंने इस कालजयी रचना के अंग्रेजी अनुवाद को उपलब्ध कराने के आग्रह को स्वीकार किया है जिसे हम शीघ्र अपने पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।)

आप सुश्री निर्देश निधि जी की अन्य  दो कालजयी रचनाएँ निम्न लिंक पर पढ़ सकते हैं :

  1. सुनो स्त्रियों
  2. महानगर की काया पर चाँद

☆   शेष विहार ☆

मैं समय हूँ । मौन रहकर युगों को आते जाते देखना मेरे लिए एक सामान्य प्रक्रिया है अपनी अनुभवी आँखों से मैं  सिर्फ देख सकता हूँ । अच्छे बुरे किसी भी परिवर्तन को रोक पाना  मेरे लिए संभव नहीं था । मैं अक्सर किसी एक कहानी, जो सबसे अलग सी होती है को उठाता हूँ और आप सबके समक्ष रखता हूँ । आज मैं इस युग की एक माँ और उसके आठ वर्षीय बेटे की कहानी सुनाने जा रहा हूँ । यह कहानी भारत नाम के देश से ली है । अभी जो मैं देख रहा हूँ वह सुनाता हूँ जस का तस,

“वैन, सूरज डूबने वाला है, उठो और तैयार हो जाओ आज “शेष विहार” देखने जाना है न । जल्दी करो जिससे कि हम सूरज उगने से पहले – पहले ही सुरक्षित  वापस आ सकें । “

वैन फ्रैश रूम में गया और अपनी पसंद की ड्रेस, परफ्यूम, जूते वगैहरा कम्प्युटर में फीड किए । कम्प्युटर ने उसे पाँच मिनिट के अंदर – अंदर ऐन्टी वायरल, ऐन्टी बैक्टीरियल एयर से ड्राइक्लीन करके फीड किए हुए कपड़े, जूते वगैहरा पहनाकर पूरी तरह तैयार कर दिया ।

आठ वर्षीय वैन ही पूरे शहर में एक बच्चा है जिसने अपनी माँ की कोख से जन्म लिया है, और अब भी माँ के साथ रहता है । पिता का तो उसे पता नहीं क्योंकि उसकी माँ ने गर्भधारण के लिये राजकीय स्पर्म लैब का ही सहारा लिया था । माँ की कोख से जन्म लेने और माँ के साथ एक ही सैल में रहने  के कारण, अनुभव बांटने के लिए आए दिन, मीडिया और अनेक संस्थाओं के लोग उन दोनों माँ – बेटा का इंटरव्यू लेने आते रहते हैं । उन पर अनेक रिसर्च हो  रही हैं ।  क्यों कि इस  युग की स्त्री अपनी कोख से शिशु को जन्म देने की योग्यता खो चुकी है अगर कोई इक्का – दुक्का स्त्री योग्य हो भी तो वह गर्भधारण कर शिशु को जन्म देने का कष्ट लेने को तैयार नहीं होती ।  पिछली कई सदियों से भ्रूड़ हत्याएँ इतनी अधिक होती आ रही हैं कि प्रकृति ने स्त्री से संतति निर्माण की असाधारण योग्यता लगभग छीन ही ली है। पुरुषों में  भी कोई इक्का – दुक्का ही बचे हैं जो संतति निर्माण की प्रक्रिया सतत रख पाने में समर्थ  हैं । सभी बच्चे वैज्ञानिकों की देख – रेख में लैब से ही जीवन का प्रारम्भिक रूप पाते हैं । सरकारी संस्थाएं स्त्रियों की गर्भधारण क्षमता का टेस्ट कराती हैं । जिससे कि प्रकृति के नियम को फिर से जीवित किया जा सके ।  वैन की माँ को सरकार ने इस योग्य पाया था , अतः उसे तमाम सुविधाएँ और लाभ देने के नाम पर गर्भधारण के लिए  राजी कर लिया गया था । माँ ने भी यह सोचा था कि जिस शिशु को वह कोख से जन्म देगी वह उससे पुराने समय के पुत्रों की तरह थोड़ा बहुत प्रेम तो करेगा ही । और सरकारी लाभ मिलेंगे सो अलग , खैर …..

वैन खुद भी बड़ी हैरानी के साथ अपनी माँ से पूछता है, “माँ आपने सचमुच मुझे अपने पेट से पैदा किया है ? अमेजिंग मोम, यू आर रिएलि अमेजिंग । मेरी क्लास के सभी लड़के  लैब में ही बढ़े, और वहीं पैदा भी हुए । उनकी माएँ या  पिता भी अगर इच्छा होती तो एक विशिष्ट जार में पल रहे अपने अजन्में बच्चों को देखकर आ जाते थे  बस । काफी सुरक्षित  रहा होगा इस तरह उनके बच्चों का पलना । फिर वो वहीं से शिशु पालन गृह  चले गए,  वहीं से पढ़ने के लिए छात्रावास चले गए । कभी – कभार  ही मिले होंगे अपने बायोलोजिकल पेरेंट्स से तो, किसके पास इतना समय है माँ कि बस बच्चों से ही मिलता फिरे या बच्चों के पास भी क्या बस यही एक काम रह गया है ? “

“हाँ वैन अब तो यही होता है, पर तुम्हें मैंने वाकई अपने गर्भ में पाला है पूरे नौ महीने।“  माँ ने उत्तर दिया ।

“पर माँ आपने तो बहुत ही रिस्क लिया ।  मुझे सिर्फ इमेजिंग डिवाइस की आधुनिक तकनीक से ही देख पाई अपने पेट के अंदर, क्यों लिया आपने इतना रिस्क ? आपने तो मेरे जीवन को भयानक खतरे में ही डाल दिया था माँ ।“

“नहीं वैन ऐसा नहीं है, आदमी की देखभाल आदमी से बेहतर ही कर पाती है माँ प्रकृति परंतु हमारे पूर्वजों ने उसपर विश्वास करना छोड़ दिया था न । सो अपना तिरस्कार देख कर उसने भी  अपने हाथ खींच लिए  । उसकी हानि उठाई हमारी पीढ़ियों ने ।“

“हानि कैसे माँ ?”

“देखो जैसे अब हमें दिन की जगह रात में ही सारे काम करने पड़ते  हैं । दिन भर सूरज की ऊर्जा एकत्रित करके रात को दिन बनाने की मजबूरी है हमारी परंतु  पहले सारे  काम दिन में  सूरज के प्रकाश में ही हुआ करते थे । हमारे पूर्वजों ने धरती पर लहराते सारे जंगल काट डाले और वहाँ आधुनिक बाज़ार – हाट, आधुनिक साज – सज्जा गृह, सड़कें रास्ते , बड़ी – बड़ी फैक्ट्रियाँ, होटल, आधुनिक निवास, स्मार्ट  शहर , जिससे जंगल तो गए ही खेती – बाड़ी की ज़मीन भी गई । हमारे पूर्वजों ने धरती के प्राकृतिक  साधनों का हद से ज़्यादा दोहन कर डाला ।“

“हाँ माँ, मैंने कहीं पढ़ा भी था कि प्रकृति मनुष्य की आवश्यकताएँ तो पूरी कर सकती थी पर उसका लालच वह पूरा नहीं कर सकी । “

“हाँ वैन, तुमने ठीक पढ़ा था । पुराने समय में आज की तरह सूर्य की ऊर्जा का प्रयोग नहीं किया जाता था वाहनों में बल्कि उन्हें चलाने के लिए पेट्रोल – डीज़ल नाम के तरल ईंधन होते थे जो जलने पर बहुत प्रदूषण फैलाते थे और भी रोज़मर्रा प्रयोग होने वाले  तमाम रसायनों के प्रयोगों ने वातावरण को बुरी तरह विषाक्त बना डाला । जीवन रक्षक प्राण वायु मरती चली गई । रही – सही कसर उस समय के शक्तिशाली कहे जाने वाले राष्ट्राध्यक्षों की महत्वाकांक्षाओं ने पूरी कर दी । यानि उन्होने विश्व को चार – चार महायुद्धों की त्रासदी मे धकेल दिया । रासायनिक, जैविक आदि अनेक प्रकार के घातक हथियारों ने चहकते जीवन को शमशान की वीरानी में धकेल दिया । धन – जन और वातावरण की  अपूरणीय क्षति हुई । तमाम आयुधों के प्रयोग से उपजे  धुएं  के जहरीले  गुबारों ने धरती के रक्षात्मक कवच यानी  ओज़ोन लेयर को हमेशा के लिए जला डाला । जो हमें  सूरज की हानिकारक किरणों से बचाती थी । “

“और भी बताओ न माँ क्या – क्या हुआ। “

“ और क्या बताऊँ , धरती पशु – पक्षियों से खाली हो गई । उसकी महत्वपूर्ण फूडचेन टूट गई जिन जीवों  को तुम अब सिर्फ व्यूइंग डिवाइस पर देखते हो न वो सबके सब इसी धरती पर विचरण करते थे वैन । इन्सानों  की जनसंख्या भी बहुत अधिक थी, इतनी अधिक कि कई देशों  की सरकारें अधिक बच्चे  पैदा करने वाले लोगों की कई सुविधाएं कम कर देती थीं, कम बच्चों वालों के लिए कई सुविधाओं से लैस स्कीम चलाती थीं । अब उसका उल्टा होता है वैन । अब  बच्चे पैदा करने के बदले में सुविधाएं देती हैं सरकारें। क्यों कि इतनी विशाल धरती पर मात्र दो चार ही देशों का अस्तित्व शेष रहा है जिनमें से एक हमारा भारत है । ।“

“वैन उस दिन तुमने अपनी क्लासमेट अरुणिमा का हाथ देखा था न, सूरज की किरणों  ने किस तरह जला दिया था । अब उसे “डी एस डी” यानि “डिजीज ऑफ स्योर डैथ” होना लाज़मी है । वो मानती ही नहीं है, उसे हर रोज़ दिन में जागने की पड़ी रहती है । उसे उसकी वार्डेन ने कितनी बार मना किया था दिन में जागने से “

“माँ, जन्म के समय डॉक्टर ने उसे नैनोवाट्स नहीं दिये थे ?”

“दिए होंगे वैन , पर वो छोटी – मोटी बीमारियाँ या किसी छोटी – मोटी  चोट के घाव ही भर सकते हैं ना औटोमैटिकली, वो इंसान को सूरज की हानिकारक किरणों से तो नहीं ही बचा सकते न  । वैन सिर्फ नैनोवाट्स ही नहीं अब तो जन्म  के समय एक चिप मस्तिष्क में,  एक आई डी चिप , हियरिंग डिवाइस , कॉर्निया प्रोटेक्टिव लैंस , फेंफड़ों और दिल के लिए पंपिंग डिवाइस आदि भी बच्चे को जन्म  के समय ही लगा दी  जाती है । “

“हाँ, हाँ माँ वो तो मुझे भी पता ही है , इसमें तुम क्या नया बता रही हो । यह मुझे पता है कि हर समय मोबाइल फोन पर बातें करते रहने , लाउड म्यूजिक सुनते रहने से औए तरह – तरह की मशीनों की तेज़ आवाज़ें सुनते रहने से इंसान के कान कुदरती तौर पर खराब होने लगे थे । आँखों पर टी वी और कम्प्युटर स्क्रीन आदि के प्रभाव घातक पड़े , धरती के विषाक्त हो गए  वातावरण  ने फेफड़ों को नाकाम करना शुरू कर दिया था , रहन – सहन की दोषपूर्ण शैली ने मनुष्य  के स्वास्थ को लगभग निगल ही लिया था । तीसरे और फिर चौथे विश्वयुद्ध के बाद देखना, सुनना , सोचना, समझना, यानी जीना लगभग असंभव हो गया था, इसीलिए मानव मस्तिष्क में भी चिप लगानी पड़ी । इस चिप में कुछ तो सामान्य ज्ञान की बातें होती हैं जो सभी नागरिकों को आवश्यक रूप से पता होनी ही चाहिए और कुछ विशेष ज्ञान होता है । वह ज्ञान जो उनके कार्यक्षेत्र  निर्धारित करता है । इसी चिप के माध्यम से हम एक दूसरे को अपने संदेश पहुंचा सकते हैं बिना किसी अतिरिक्त प्रयास और बिना किसी अतिरिक्त डिवाइस के, और इसी चिप के माध्यम से हम रास्ते खोजने मे सक्षम होते हैं ।  जिनको यह चिप नहीं लगाई जाती  वो लगभग विक्षिप्त बन कर ही जीते हैं ।  ये सब पता है मुझे । “

“हाँ बिलकुल सही कहा वैन । और पता है अंतिम विश्वयुद्ध के बाद कौन बच पाये ? सिर्फ वो वैज्ञानिक जो अंडर ग्राउंड बंकरों के क्रत्रिम वातावरण में बरसों छिपे पड़े रहे जिनकी बॉडी ने इस घातक जीवन शैली को अडोप्ट कर लिया और खुद को सूरज की जानलेवा किरणों से बचाकर रखा । उन्होने ही  धरती पर मानवी  हृदय के स्पंदन का स्वर सतत रखा वैन । अब पृथ्वी पर  जितनी भी जनसंख्या है सिर्फ उन चंद वैज्ञानिकों की ही सन्तानें हैं ।  विश्व युद्धों की वजह से फैले प्रदूषण ने धरती का वातावरण ही नहीं उसके गर्भ में छिपा पानी तक भयानक रूप से विषाक्त कर दिया, पीना तो दूर नहाने के लायक तक नहीं छोड़ा ।“

“माँ, तो क्या पहले युग  में धरती  के पानी से ही नहाया  जा  सकता था ?”

“नहाया ही नहीं वैन धरती  का पानी ही खाने और पीने में भी प्रयोग किया जाता था ।“

“सच माँ !”

“हाँ हाँ बिलकुल सच , अभी जब तुम बड़ी कक्षा में जाओगे न तो तुम्हें ये सब इतिहास और विज्ञान दोनों ही विषयों की कक्षाओं में  पढ़ाया जाएगा । पानी तो तीसरे विश्वयुद्ध के बाद विषाक्त होकर पीने के अयोग्य हुआ । तब तक भी कुछ शुद्धिकरण संयन्त्रों से उसे शुद्ध किया जा सकता था परंतु चौथे महायद्ध ने यह सम्भावना  भी समाप्त कर दी  । कुछ पानी और खाने की सामग्री को बंकरों  में सुरक्षित  रखा गया था आड़े वक्त के लिए ।  बस उसी ने जीवित रखा, बच रहे कुछ विशेष वैज्ञानिकों को ।  तभी तो अब हम प्लैनेट एक्वेरियम से पानी लाते हैं और बहुत कम ला पाने की वजह से उसी को बार – बार रिसाइकिल करके प्रयोग करते रहते हैं । यही कारण है कि अब मात्र  कुछ एम एल  से ही स्पंज बाथ लेना होता है, या फिर इस आर्टिफ़िश्यली ऐन्टीबैक्टीरियल, ऐंटीवायरल की गई एयर से ही ड्राईक्लीन करना पड़ता है खुद को ।“

“तो माँ क्या हमारे सारे पूर्वज मूर्ख थे जो उन्होने इतनी बड़ी – बड़ी भूलें कीं । आपस में लड़ना , पेड़ काटना ,जंगलों का विनाश करना ज़रूरी था क्या ? हमें उन्होने क्या दिया , ये बंद घरों की जेल, जिनमें हमे दिनभर बंद रहना पड़ता है । अगर ये घर भी एयरकंडीशंड सनलाइट प्रूफ, और आक्सीजनफिल्ड न होते या हम न बना पाए होते  ऐसे घर तो  हम भी तो जीवित नहीं रहते । ”

“हाँ वैन यह सच है । पर मनुष्य हारने के लिए नहीं बना इसीलिए हम दूसरे गृह जिनमें पुरानी धरती जैसा ही प्राकृतिक और जीवन का सहयोगी वातवरण है, अपने निवास के लिए खोज पाने में लगभग सफल हो ही चुके हैं । पर हाँ वहाँ जाकर बसने तक का समय मनुष्य जाति के लिए वास्तव में ही बेहद कठिन है । “

“माँ क्या हमारे जीवन में ही हम जा सकेंगे उस नए गृह पर ?”

“मैं अपना तो नहीं कह सकती वैन पर हाँ तुम तो ज़रूर ही जा सकोगे और हाँ वहाँ जाकर भी अकेले मत रहना । अपना परिवार जिसमें एक स्त्री जिसे पत्नी कहा जाता रहा है पुराने समय में , अपने कुछ बच्चे जो तुम्हारी उस पत्नी और तुम्हारे होंगे उन्हें अपने साथ ही रखना । देखो हम कितनी ही पीरिओडिकल  फिल्मों में देखते हैं किस तरह सारा परिवार हंसी – खुशी रहता था खुले मैदानों में खेलते – कूदते हंसी मज़ाक करते कितने प्यारे लगते हैं उस परिवार के सदस्य ।“

“अरे नहीं – नहीं माँ तुम ये हाइपोथेटिकल बातें मत करो, प्रैक्टिकल बातें करो जो संभव हो सकती हों । मैं तो रहूँगा बिलकुल अकेला, आज़ाद सबकी तरह । मैं क्यों फन्सूंगा समस्या  में । “  वैन ने माँ की बात का प्रतिरोध किया ।

“अब बहुत सारी बातें हो गईं वैन और सूरज भी लगभग डूब ही चुका है । अपना जीवन रक्षक सूट पहन लो अपना फ्लाइंग कैपस्यूल चैक करो और उसकी फ्युल चिप ,ऑक्सीज़न  वगैहरा – वगैहरा चैक करो, अपनी डायट टैबलेट और ऐच2 ओ वाली टैबलेट्स का जार रखना मत भूल जाना । मैंने अपने ये सभी काम कर लिए हैं , मैं पूरी त्तरह तैयार हूँ। “

“माँ मैंने भी ये सब काम कर लिए हैं वो  भी तुमसे पहले , बस लाइफ सेवरसूट पहन लेता हूँ । पर माँ मैं बार – बार यही सोचता हूँ कि तुम सबसे अलग हो  ।  मेरे लिए तुमने  अपनी प्राइवेसी सैक्रिफ़ाइस की । “

पर वैन नहीं जानता कि माँ ने तो सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं और उसके बार – बार पड़ने वाले दबावों के कारण गर्भधारण  किया था । पूरे शहर में एक उसी का टेस्ट आया था गर्भधारण के लिए पोज़िटिव ।  पर उसे जन्म देने और साथ आ जाने पर उसे वैन का साथ बहुत अच्छा लगा था । हलाकि कभी – कभी उसे अपनी प्राइवेसी खत्म होती ज़रूर ही लगी थी और काम का कुछ अतिरिक्त अनचाहा भार भी । किसी भी सदी की सही पर थी तो वह माँ ही न, इसीलिए बेटे का सानिध्य उसे भला लगा था ।

“हाँ वैन यह तो मैंने किया पर मुझे अच्छा लगा तुम्हें साथ रखना शायद इसीलिए मैं यह कर पाई । पर जैसा कि मैंने तुम्हें पहले भी कभी बताया था कि पहले पूरा परिवार साथ – साथ ही रहता था ।“

“माँ परिवार क्या ? उसके सही मायने बताओ  ।”

“परिवार मतलब, माँ, पिता यानि जिस स्त्री और जिस पुरुष के संयोग से बच्चे का जन्म होता है , वो बच्चे के माँ – पिता होते हैं । बहन – भाई जो उन्हीं माँ पिता से दूसरे बच्चे होते हैं । माँ पिता के माँ पिता और  उनके दूसरे बच्चे आदि इसी  तरह करीबी लोगों से मिलकर बनता था  परिवार । “

“माँ पहले बताओ मेरा पिता कौन है ?”

“वैन मैं तुम्हारे पिता को नहीं जानती क्योंकि तुम्हें मैंने अपनी कोख से जन्म तो ज़रूर दिया लेकिन उसके लिए मैंने राजकीय स्पर्म लैब का ही सहारा लिया ।”

“ओह माँ ! काश कि तुम्हें पता होता तो मैं भी फिल्मों की तरह अपने पिता के साथ घूमता, खेलता ।“

“और हाँ सुनो, एक मज़े की बात यह कि उस पुराने समय में डोमेस्टिक हेल्प भी साथ ही घर में रह जाती और पशुओं के लिए भी घर के पास ही एक अलग से जगह होती थी । और कई  पक्षी भी अपने घोंसले इन्सानों के  घरों में बनाए रखते थे। “

“ओह माँ , कितनी अन्हाइजेनिक होती होंगी उस समय घर की कंडीशन ।“

“वह समय आज के जैसा नहीं था वैन , इन्फैक्शन इतनी आसानी से नहीं लगता था , मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता काफी अच्छी थी।“

“माँ जब इंसान बच पाया तो पशु – पक्षी क्यों नहीं बचे ?”

“देखो वैन इंसान काफी कुछ स्वार्थी तो था ही शुरू से , जितनी सुरक्षा वह अपनी रख पाया उतनी पशु पक्षियों  की नहीं, फिर विश्व युद्धों के बाद इतने स्थान सुरक्षित  बचे ही नहीं थे कि उनमें पशु पक्षियों  को भी रखा जा सकता अतः इंसान ने खुद को बचाना  ज़रूरी समझा । “

“अब पशु पक्षी तो क्या  स्त्री – पुरुष भी साथ नहीं रहते क्यों कि कोई भी किसी को एक पल भी सहन नहीं कर पाता । कोई दूसरे की वजह से अपनी पल भर की स्वतन्त्रता भी नहीं गंवाना चाहता ।  पता है वैन इस समय आदमी कम और मेंटल हास्पिटल ज़्यादा क्यों हैं, अब क्योंकि पुराने जमाने में लोग आपस में मिलकर, हंस – बोलकर खुद को तनाव रहित कर लेते थे।“

“माँ, तो क्या लोगों के पास हंसने – बोलने का फालतू समय था ?”

“हाँ वैन बिलकुल था ।  विचित्र  विरोधाभास हुआ है । आधुनिक मशीनों के माध्यम से घंटों के काम मिनटों में हो जाते हैं लेकिन समय कम पड़ गया है आदमी के पास । “

“धरती पर अनगिनत अनाज पैदा  होते थे लोग दिन में कई कई बार खाना खाते थे अब की तरह टैबलेट्स पर नहीं जीते थे बाकायदा स्वादग्रन्थियाँ होती थीं । आदमी ने शरीर को ताकत देने के लिए गोलियों का प्रयोग आरंभ किया और धीरे – धीरे उसे इतना बढ़ाया कि स्वादग्रन्थियाँ मरती  ही चली गईं । तुमने देखा न अपनी व्यूइंग डिवाइस पर तरह – तरह के  अनाज, तरह – तरह के खाने और मिठाइयां ।“

“माँ तो क्या धरती की  उर्वरा शक्ति आउटडेटेड हो गई थी ?”

“नहीं वैन वह तो अनंत काल तक वैसी ही बनी रह सकती थी जैसी थी परंतु वह आदमी की जरूरतें तो पूरी कर सकती थी लालच नहीं, जैसा कि तुम जानते ही हो  । इसकी संपदाओं का  हमारे पूर्वजों ने इस कदर शोषण किया कि हमें इन ऐयरकंडीशंड वाहनों और घरों का बंदी बना डाला । “

“चलो वैन बाकी बातें बाद में करते हैं ,  सूरज को डूबे लगभग पंद्रह मिनिट हो गए । तुम चैक कर लो कि तुमने अपने फ्लाइंग कैप्स्यूल में डेस्टिनेशन ठीक से भरा है या नहीं , कभी कहीं भटक जाओ । “

“नहीं माँ मैंने ठीक से फीड कर लिया है ।इस तरह की गलती अब ब्रेन में फिट हो जाने वाली ब्रेनी चिप करने ही कहाँ देती है । “

साँझ होते ही आसमान में लोगों के वाहन दिखाई देने आरंभ हो गए । वो दोनों निकलने ही वाले थे कि माँ का कोई परिचित उनके सैल यानि घर के पास से गुज़रा तो उसने देखा कि उनके सेल की इंसुलेशन फिल्म कुछ हट सी गई है । आगामी खतरा देख कर उसने वैन की माँ को आगाह किया । वैन की माँ ने सरकारी कार्यालय का कोड दिमाग में सोचा और कार्यालय को सूचना दी कि उनके सैल की फिल्म ठीक करा दी जाए । कार्यालय ने उसे  आश्वस्त किया कि उनके लौटने तक कार्य हो जाएगा । इस आश्वस्ति के मिलते ही माँ बेटा दोनों ने अपने – अपने लाइफ सेवर सूट ठीक से पहनकर, अपने – अपने ऑक्सीज़न मास्क चैक किए और दोनों ने अपने – अपने फ्लाइंग कैप्सूल में बैठकर फ्रीक्वेन्सी मॉड्युलेशन  के माध्यम से   आपस में बात करते हुए एक हज़ार किलोमीटर का सफर मात्र बारह मिनिट छह सेकेंड  में तय कर लिया ।

“शेष विहार” आ चुका था । भाग्यवश ऐसिड रेन नहीं हो रही थी । दोनों ने अपने – अपने ऑक्सीज़न मास्क पहने और कैप्सूल से बाहर आ गए । काँच के अंदर करीब दस किलोमीटर का प्राचीन धरती का छोटा मॉडल  कृत्रिम रूप से तैयार किया गया था पेड़ – पौधे , घास –  फूस, फूल –  फल, पत्ती, झरने, पहाड़, नदी, हाँ नदी भी धरती के विषाक्त जल वाली नदी, चिड़िया, तितली, शेर, गाय, बैल, मैमथ, डायनासोर,  हाथी, जिराफ,अनगिनत कीड़े मकौड़े और दुनिया भर के मनुष्यों की जातियों प्रजातियों के बैटरियों और रिमोट के माध्यम से चलते – फिरते जीवंत लोग सब कुछ बिलकुल असली जैसे, नयनाभिराम दृश्य ।

“इतनी सुंदर थी धरती ! हमारे मूर्ख पूर्वजों ने क्यों कर दिया इसका सर्वनाश ? क्या छोड़ा हमारे लिए ?” वैन अपनी माँ से यही पूछ रहा था ।

उन दोनों माँ बेटे की तरह वहाँ और भी बहुत से लोग थे । परंतु अब पिछली सदियों की तरह कहीं भी भीड़ नहीं जुटती । बच्चे लैब्स में पैदा होते हैं कुछ ही लोग हैं जो अपने लिए ऑर्डर करके बच्चे तैयार कराते हैं क्योंकि कोई भी बच्चों को समय देना और उनकी जिम्मेदारी  लेना नहीं चाहता । हाँ बच गए देशों की सरकारें ही बस ज़रूरत भर नागरिक पैदा करवाती हैं । जिनका वे ठीक से पालन – पोषण कर पाएँ । इसीलिए शहर के शहर खाली पड़े हैं । लोगों का पालन – पोषण सरकार का जिम्मा है ।  लोग मृत्यु के भय से स्वयं को दिन भर अपने घरों में कैद करके रखते हैं । रात को ही काम किए जा सकते हैं, या घर से बाहर निकल सकते हैं । अधिकांश लोग अपने कार्य क्षेत्र और घरों तक ही सीमित हैं । जिन इमारतों को  आदमी ने कभी भूकंप रोधी समझकर खड़ा किया था धरती की सीज़्मिक प्लेट्स उनमें से हजारों लाखों का मान मर्दन कर चुकी हैं कौन जाने कब बाकियों के साथ भी यही होगा हालाकि अब उन्हें खाली ही रखा गया है प्राचीन धरोहरों की तरह । अब सैल के नाम से पुकारे जाने वाले आधुनिक निवास  तो पूरी तरह से सूरज की रौशनी से रहित हैं । दूर – दूर तक कंक्रीट पसरी हुई है । न घास बची न कोई हरियाली । ऐसिड रेन ने सब कुछ तबाह कर  दिया है ।

देशों के नाम पर संसार भर में अब दो चार ही देशों का अस्तित्व बचा है । यह कहानी भारत नाम के देश से ली है जैसा कि मैं पहले भी बता ही चुका हूँ । इस सदी में अगर कुछ सकारात्मक बचा है तो वो है युद्धों का न होना । क्योंकि अब अपने आप को धरती पर जीवित रखने के लिए जो लड़ाई मनुष्य  को प्रकृति से लड़नी पड़ती है उसके बाद आपस में लड़ने की ऊर्जा बचती  ही कहाँ है ? धरती अपने ऊपर हुए अत्याचार का प्रतिशोध लेने पर उतर आई है । वैन और उसकी माँ दोनों ने जी भर कर शेष विहार देखा । हरियाली धरती का अप्रतिम रूप उनके मन पर सारी धरती के ऐसा न होने के गहरे दुख के साथ छप सा गया । वे अपने –  अपने कैप्सूल में वापस घर के लिए चल पड़े । अभी थोड़ी ही दूर चले थे कि वैन की माँ को सांस लेने में दिक्कत होने लगी । शायद उसके कैप्सूल से ऑक्सीज़न लीक कर रही थी,सामान्यतः  जिसकी आशंका न के बराबर होती, परंतु यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना घट रही थी   । उसने बेटे से कहा,

“वैन शायद मेरे फ्लाइंग कैप्सूल से ऑक्सीज़न लीक कर रही है, वैन सुनो । क्या करूँ ? “अब क्या हो सकता है यह तो चलते वक्त ही चैक करना चाहिए था आपको । फिर भी मैं ऑक्सीज़न सप्लायर कंपनी को सूचित कर देता हूँ ।वो स्वयं आपके कैप्स्यूल की लोकेशन देख कर आपकी मदद करेगी । तब तक आप अपना ऑक्सीज़न मास्क पहन लो ।“ बेटे ने उत्तर दिया ।

“हाँ, पहन तो लिया पर शायद यह भी ठीक से भरा नहीं है । “ माँ ने उखड़ती सांस के साथ उत्तर दिया ।

“वैन जल्दी कुछ करो मेरा दम घुट रहा है । “ माँ ने बेचैन होकर बेटे को पुकारा  ।

“माँ मैं और क्या करूँ , कर ही क्या सकता हूँ मैं ? “

“वैन हम दोनों एक ही कैप्सूल में जा सकते हैं तुम मुझे भी अपने साथ ले लो । “ माँ ने बेचैन होकर बेटे से याचना की ।

“नहीं माँ,क्या आप नहीं जानतीं कि ये कैपस्यूल  मेरे वजन के हिसाब से ही डिजाईंड है । “

“हाँ जानती हूँ पर …..” अगले शब्द उसके साँसों की तेज़ धौंकनी में खो गए।

“जानती हैं तो यह भी जानती होंगी कि कैपेसिटी  से अधिक वजन लेकर उड़ने पर इसमें भी कोई न कोई  तकनीकी खराबी आ ही सकती है । इसकी भी ऑक्सीज़न ही लीक हो गई तो मास्क कितनी देर साथ दे पाएगा माँ ? नहीं माँ मैं अपने जीवन का रिस्क नहीं ले सकता । मैंने कंपनी को सूचित कर  दिया है वो कुछ न कुछ ज़रूर करेंगे । उनकी जिम्मेदारी है माँ ।  “

“क्या तुम्हारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है वैन ?” खाँसते, दम घुटे हुए, माँ ने बेचैन  होकर बेटे से शिकायत की ।

“प्रैक्टिकल बनो माँ, मैं यहाँ खड़े रहकर भी  क्या कर सकूँगा , अपना भी जीवन खो देने के सिवा । “

“वैन मत जाओ मैं मर रही हूँ । “

मैं पिछले दस मिनिट से यहीं खड़ा हूँ आपकी वजह से , अब और नहीं रुक सकता, सॉरी माँ । “

और वो चला गया कैप्स्यूल कंपनी से अभी तक कोई मदद नहीं आ सकी है माँ की सांसें धीरे – धीरे बंद होने को हैं पीड़ा असह्य है मृत्यु उसे अपने सामने मुंह बाए खड़ी दिख रही है । अगर वो कैप्स्यूल से बाहर आती है तो धरती का वर्तमान  विषाक्त वातावरण उसे रिसती हुई ऑक्सीज़न वाले कैप्स्यूल से भी जल्दी मार डालेगा । ऊपर से ऐसिड रेन और आरंभ हो गई है । उस का मरना अब तो तय है । जिस समाज और समय में कोई अपना एक पल भी किसी को देना नहीं चाहता, कोई स्त्री किसी बच्चे को अपनी कोख से जन्म देने की कल्पना तक नहीं कर सकती उस समाज और समय में रहकर उसने एक बच्चे को , यानि वैन को अपनी कोख से जन्म दिया । यह सोचकर कि वह इस समाज के दूसरे अलग – थलग रहने वाले बच्चों से कुछ अलग बनेगा और उसमें कुछ संवेदना जीवित रहेगी और वह माँ जैसे रिश्ते की गंभीरता अधिक न सही थोड़ी सी तो ज़रूर समझेगा । लेकिन नहीं उसका  यह अनुमान  गलत निकला था । सच्चाई यही थी कि दूसरे लोगों की तरह ही उसमें भी कोई भावुकता कोई संवेदना पैदा नहीं हो सकी थी । जन्मते समय दूसरी चीजों के साथ ही चिप में प्रेम करुणा  सहानुभूति या भावना की डोज़ को भी स्थान देना आवश्यक था, जो कि संभव नहीं था  ।  माँ ने सोचा था कि कोख से पैदा करेगी तो प्रकृतिक रूप से यह सब उसमें आयेगा ही । परंतु वह गलत साबित हुई थी । वैज्ञानिकों ने तो कहा ही था कि संभावना कम थी पर हाँ हो भी सकता था कि वह  ये सब लेकर जन्मता । जिस तरह सूरज की विषाक्त किरणों ने धरती के पेड़ – पौधे, पशु – पक्षी जानवरों और असंख्य मनुष्यों को मार डाला उसी तरह उसने मानव मस्तिष्क के प्रेम करुणा वाले सभी रसायनो को सोख लिया है यह सोचते – सोचते वह अपनी अंतिम साँस ले  रही है………

मैं समय हाथ बांधे खड़ा हूँ विवश, व्यथित ………..

 

संपर्क – निर्देश निधि , द्वारा – डॉ प्रमोद निधि , विद्या भवन , कचहरी रोड , बुलंदशहर , (उप्र) पिन – 203001

ईमेल – [email protected]

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Vivek

सच है जहाँ सूर्य की किरणें भी नहीं पहुंच पाती वहां रचनाकार की कल्पना पहुँच सकती है , विज्ञान कथाओं का ताना बाना ही तार्किक कल्पनाओं पर बना होता है ।
निधी जी ने जो भयावह चित्रण कर हमें जगाने का प्रयास किया है उसके लिए वे साधुवाद की सुपात्र हैं । अच्छे लेखन का प्रभाव होता है कि पाठक पढ़ लेने के बाद गुनता रहता है । मैं अभी इसी प्रभाव में हूँ ।
आभार हेमन्त जी , उम्दा कहानी पढ़ने का अवसर देने के लिए

Nirdesh Nidhi

मेरी ओर से आपको हार्दिक धन्यवाद विवेक जी।

निर्देश निधि