श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के सामयिक व्यंग्य को  समय प्रकाशित न करना निश्चित रूप से इस व्यंग्य रचना के साथ अन्याय होगा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी ने बखूबी स्व हरीशंकर पारसाईं जी के पात्र मातादीन का उपयोग सामयिक और सार्थक तौर पर किया है और इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। तो लीजिये प्रस्तुत है श्री विवेक जी का व्यंग्य –  “इंस्पेक्टर मातादीन की सफलता का बैकग्राउंड”

 

♥ इंस्पेक्टर मातादीन की सफलता का बैकग्राउंड

 

आज की बड़ी खबर है कि भारत के वैज्ञानिक  चांद पर रोवर “प्रज्ञान” भेज रहे हैं,देश के लिये बड़े ही गर्व की बात है .स्वाभाविक है मुझे भी गर्व है.  पर कहते हैं न कि जहां न पंहुचें रवि वहां पहुंचे कवि, व्यंग्यकार होने के नाते  मुझे ज्यादा गर्व है कि इसरो जब किसी भारतीय को चांद पर पहुंचायेगा तब पहुंचायेगा, परसाई जी ने तो उनके जमाने में ही  इंस्पेक्टर मातादीन को चांद पर पहुंचा दिया था.

परसाई जी के इंस्पेक्टर मातादीन ने  क्यो और कैसे चांद के हर थाने के सम्मुख हनुमान जी की मूर्ति स्थापित करवा दी थी या कैसे इंस्पेक्टर मातादीन ने चांद पर चश्मदीद गवाह ढ़ूंढ़ निकाले थे यह समझना हो तो यह जानना बहुतै जरूरी  है कि मातादीन का बैकग्राउंड क्या था ? वे इंस्पेक्टर बने कैसे थे ?

मातादीन का जन्म ग्राम व पोस्ट डुमरी तलैया  थाना  ककेहरा जिला होनहारपुर में हुआ था.  उनका घर थाने के लगभग सामने, आम के पेड़ के पास ही था. जब मातादीन नंग धड़ंग बैखौफ आम की केरियां तोड़ने के लिये आम के पेड़ पर सरे आम पत्थर बाजी किया करते थे तभी कभी वर्दी के रौब को समझते हुये उनके बाल मन में खाकी वर्दी धारण करने की प्रेरणा का भ्रूण स्थापित हो गया था. आम के पेड़ के नीचे चबूतरा बना हुआ था, जिस पर थाने आने वाले लोगो के परिजन बैठकर धड़कते दिल से इंतजार करते थे. चबूतरे पर आम के वृक्ष के तने के सहारे हनुमान जी की एक मूर्ति टिकी हुई थी, जिस पर चढ़ाये गये प्रसाद और सिक्को पर  मातादीन और उनके बाल सखा निधड़क अपना अधिकार मानते थे .मातादीन कभी भी हनुमान जी की चढ़ौती में मिली मुद्रायें और प्रसाद अकेले न खाते थे,  हमेशा उसे अपने दोस्तो में बराबर बांटते.  इस तरह बचपन से ही मातादीन हनुमान जी पर अगाध श्रद्धा रखने लगे थे. हम समझ सकते हैं कि यही कारण रहा कि चांद पर उन्होने हर थाने के सम्मुख हनुमान जी की मूर्ति स्थापना का महान कार्य किया. घर के सामने ही थाना होने के कारण मातादीन के घर पोलिस वालों का  कुछ कुछ आना जाना बना रहता था. जैसे जैसे मातादीन युवा हुये उन्हें कुछ कुछ भान होने लगा कि अनेक प्रकरणो में बिना घटना के समय उपस्थित रहे भी कैसे उनके पिता चश्मदीद गवाह दर्ज हो जाते थे. बस यहीं से उन्हें वह महान गुर पुस्तैनी रूप से अपने खून में समाहित मिला कि वे सफलता पूर्वक चांद पर अनेक चस्मदीद गवाह ढ़ूंढ़ सके. कक्षा ११ वीं की परीक्षा ग्रेस मार्कल्स के साथ पास होते ही युवा मातादीन ने पोलिस मुहकमें में भर्ती होने की ठान ली. जहां चाह वहां राह. रोजगार समाचार के एक विज्ञापन ने मातादीन की किस्मत ही बदल दी. आरक्षक बनने की लिखित परीक्षा  श्रेय मातादीन निसंकोच अपने सामने बैठे उस अपरिचित लड़के को देते हैं जो मैदानी दौड़ में पास न हो सका था, पर बचपन की सारी आवारागर्दी, आम के पेड़ पर चढ़ना, वगैरह मातादीन के बहुत काम आया और वे मैदानी परीक्षा में भी सफल हो गये .उनकी इन सफलताओ को देख पिताजी ने माँ के कुछ गहने बेचकर उनके आरक्षक बनने की शेष अति वांछित आवश्यकतायें यथा विधि पूरी कर दी थीं. और इस तरह मातादीन आरक्षक मातादीन बन गये थे.

आरक्षक से इंस्पेक्टर बनने का उनका सफर  उनकी स्वयं की टेक्टफुलनेस, व्यवहार कुशलता, किंचित चमाचागिरी,बड़े साहब की किचन तक पहुंचने की उनकी व्यक्तिगत योग्यता तथा  बचपन से ही कभी भी हनुमान जी का प्रसाद और चढ़ौत्री अकेले न खाने की उनकी आदत का परिणाम रहा. आरक्षक मातादीन कभी भी यातायात थाने में अटैच न रहे, बीच में कुछ दिनो के लिये अवश्य उन्हें पासपोर्ट और नौकरी के लिये पोलिस वेरीफिकेशन का लूप लाइन वाला काम दिया गया था पर उसका सदुपयोग भी मातादीन ने कुछ बड़े लोगों से संबंध बनाने में कर लिया जिसका लाभ उन्हें मिला और इंस्पेक्टर के रूप में जब उनका साक्षात्कार होना था तो उन्होने इंटरव्यू बोर्ड में किसी को फोन करवाने में सफलता अर्जित की. परिणाम यह रहा कि ग्राम व पोस्ट डुमरी तलैया  थाना  ककेहरा का मातादीन यथा समय इंस्पेक्टर मातादीन बन सका और उसकी भेंट  जबलपुर कोतवाली के बाहर पान ठेले पर तत्कालीन सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई से अनायास हो सकी. जिन्होनें उन्हें अपने शब्द यान में बैठाकर तब ही चांद पर पहुंचा दिया जब नील आर्मस्ट्रांग  भारी भरकम अंतरिक्ष पोशाक में फंसे हुये डरते डरते चांद पर उतरे थे. खैर मातादीन के इंस्पेक्टर बनने की कहानी समझकर आप को मातादीन की असाधारण योग्यता, उनकी कार्यक्षमता पर संदेह कम हुआ होगा. अब जब इसरो चांद के उस हिस्से पर प्रज्ञान उतारने वाला है, जहां आजतक किसी अन्य देश का कोई चंद्रयान नहीं पहुंचा मुझे पूरा भरोसा है कि वहां हमारे प्रेरणा पुरुष परसाई जी के इंस्पेक्टर मातादीन के थानो के कोई न कोई अवशेष अवश्य मिल ही जायेंगें.

 

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव 

ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो. ७०००३७५७९८

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विवेक

Proud moments indeed
Every house should have one as memorial

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डॉ भावना शुक्ल

शानदार जानदार अभिव्यक्ति