हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 3 ☆ चिड़चिड़ी खिचड़ी* ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एकअतिसुन्दर व्यंग्य रचना “चिड़चिड़ी खिचड़ी*। अब आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 3☆

☆ चिड़चिड़ी खिचड़ी

 

सुबह – सुबह  से खिचड़ी खाने  को  मिल  जाए तो  दिमाग़ ख़राब हो जाता है । ऐसी बीमारी लगी  है जिसका कोई इलाज ही नहीं ।  शक लाइलाज  बीमारी  होती  है सुना  था  पर आजकल तो रोग और रोगी दोनों ही बदल गए हैं तकनीकी का युग है सो बीमारी भी  चार कदम आगे बढ़ गयी  ।

बातों ही बातों में स्वीटी से पूछा  कि बेटा कोई नयी खबर तो नहीं आयी,  आजकल सबसे पहले  युवा पीढ़ी ही  खबर सुनाती है । अब तो सारे विद्वान  विश्लेषक बन अपनी राय ट्विटर व , फेसबुक पर ही पोस्ट करते हैं । सभी अपने – अपने कारनामे इसी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से प्रदर्शित कर लाइक , कमेंट और शेयर की अनोखी चाह रखते हैं ।

अरे दादा कल सारा दिन मोबाइल डब्बा था न खुल  रहा था न ही बन्द हो रहा था शाम को कलाकारी करके सुधार डाला बड़ी मुश्किल से सुधरा,   जैसे  ही खुला लग रहा था क्या पढ़ूँ और क्या छोड़ दूँ ??  कुछ दिमाग काम ही नहीं कर रहा था, इतने मैसेज आ चुके थे । बड़ी मुश्किल से कुछ पढ़ा कुछ हटाया तब कहीं जाकर मोबाइल सही हुआ  फिर रात में नींद ही न आये तो मैनें सोचा कुछ काम ही कर लिया जाए  वैसे भी बड़े बूढ़े कहते हैं काल से सो आज कर ।

स्वीटी को छेड़ते हुई भाभी  ने  कहा *ननद रानी इसमें इंफेक्शन हो जाता है, जब ऐसा हो  तो इसको स्प्रिट में डुबोकर रखा करो और साथ ही ओ आर एस  घोल  भी पिला दिया करो……*

मुस्कुराते हुए  स्वीटी ने कहा स्प्रिट की जरूरत नहीं उसे थोड़ा सुकून से  रहने की जरूरत पड़ती है ।

बुजुर्ग हो गया  है क्या छोटे भाई ने छेड़ते हुए कहा ?

ज्यादा बुजुर्ग तो नहीं है लेकिन इसकी तबियत ठीक नहीं रहती  है ।

बिन माँगी सलाह देने में होशियार अम्मा जी ने कहा  योगशाला  में भेजो, नियमित प्राणायाम व आसन से चमत्कारिक लाभ होगा ।

वाह, अब सही हो गया,  काम-वाम मत बताया करो इन्हें , कौन बोला ??

इतनी फिक्र करके वही काम करता है जो घर को अपना समझता है , बहना  को घर  प्रमुख होना चाहिए बड़े भाई ने कहा ।

जी दादा सही कहा आपने ।

नमन है इनकी कर्मठता और लगनशीलता को छोटे भाई ने कहा ।

झूठ बोलने की आदत नहीं गयी बचपन से, सच बोलना कब सीखोगी । किसी ने सिखाया नहीं क्या ? बड़े भाई ने मुस्कुराते हुए बहना  से कहा ।

मैनें ये कब कहा कि नहीं  सिखाया गठबन्धन की सरकार ऐसे ही चलती है । आपने सत्य बोलना कहाँ से सीखा  स्वीटी ने पूछा ।

असल में मैंने खिचड़ी की तरह सीखा। मिक्चर होकर, कई जगह ,कई लोगों से और अभी भी खिचड़ी ही चल रही है।

मुझे भी लगता है खिचड़ी की तरह ही सत्य सीखना पड़ेगा । पर मुझे ये कैसे पता चलेगा का कि कहाँ- कहाँ सत्य के पकवान व खिचड़ी पकी ताकि मैं भी वहीं जा कर सीख सकूँ ।

खिचड़ी  ज्यादा दिनों तक लोग पसंद नहीं करते कोई विशिष्ट व्यंज्जन बनना ही श्रेयस्कर होता है आप तो मालपुआ बनाना सीखें ।  *माल संग पुआ* वाह क्या बात है ?  छोटे भाई ने कहा ।

तुम्हे  खिचड़ी पकानी भी है और खानी भी है,

कहीं जाने की जरूरत नहीं बस चुपचाप पेट भरती  रहो दादा ने  कहा ।

मुझे खिचड़ी पकाना नहीं आता,

सही कहा…. कुछ अच्छा सा आइटम बताइए ।

पसंद अपनी अपनी, मेरी कभी खाने में कोई चीज पसंद की रही ही नहीं जो मिल गया सो खा लिया,  इस घर में आने के बाद पसंद क्या होती है ये मैंने जाना भाभी ने कहा ।

मतलब बहुत जल्द ही हम भी पसंद की चीजें खाने लगेंगे ।

केवल सर्वोत्तम ही पसंद आयेगा । भाभी ने हँसते हुए कहा ।

काहे मेहनत कर रही हो बिटिया जिसके यहां भी अच्छा बने खा आओ । कोई भी तुम्हे मना  नहीं करेगा ,अम्मा जी ने कहा ।

गलत राय मत दो अम्मा जी , जिसने भी खिचड़ी पकाई उसमें से आधे से ज्यादा को तो दादा ने  परेशान किया बाकी को  आपने भाभी ने गम्भीर होते हुए कहा ।

बिल्कुल अम्मा जी कभी- कभी तो मैं ऐसा ही करती हूँ, बगल में आंटी रहती हैं जब कुछ अच्छा बना होता है जाकर खा आते हैं । मतलब मुझे खिचड़ी नहीं पकानी है ।

आपने सच बोलना नहीं सिखाया बस । बाकी तो सब आपने ही सिखाया ,फिर झूठ  मेरे नहीं तुम्हारे बड़के भैया के शब्दों में ,मानना पडे़गा, भाभी ने कहा ।

सबको खुश रखती हैं भाभी। सकारात्मकता कहेंगे इसे छोटा भाई कहने लगा ।

बहुत से वाक्य व्यंग्य के उल्कापात की तरह गिर रहे हैं । इऩके चक्कर में मत पड़ो । कहीं की नहीं रहोगी । उड़ीसा में खिचड़ी प्रसाद होता है । कहीं जाने की जरूरत नहीं पड़ती खिचड़ी वाले खुद प्रसाद/ज्ञान बाँटते घूमते हैं दादा ने कहा ।

तभी पिताजी ने  बात को  समाप्त  करने के उद्देश्य से कहा खिचड़ी हमारा राष्ट्रीय व्यंजन है स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक… तुम खाने से मतलब रखो ।

दादा लोग हैं न ,मुझे पकानी नहीं आती मैं तो प्रचारक हूँ ।

बहुत हो  गयी चर्चा ,अब करो खर्चा ।

हींग का देय बघार, कम  डाल  मिर्चा ।।

सब खिलखिला कर हँस पड़े ।

 

छाया सक्सेना ‘ प्रभु ‘

 

© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

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