हेमन्त बावनकर
(स्वांतःसुखाय लेखन को नियमित स्वरूप देने के प्रयास में इस स्तम्भ के माध्यम से आपसे संवाद भी कर सकूँगा और रचनाएँ भी साझा करने का प्रयास कर सकूँगा। अब आप प्रत्येक मंगलवार को मेरी रचनाएँ पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है मेरी एक प्रिय कविता कविता “शब्द … और कविता”।)
मेरा परिचय आप निम्न दो लिंक्स पर क्लिक कर प्राप्त कर सकते हैं।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति # 7 ☆
☆ शब्द … और कविता ☆
मेरे शब्द
कभी सोते नहीं।
जब तुम सोते हो
तब भी नहीं
और
जब मैं सोता हूँ
तब भी नहीं।
ये
शब्द ही तो
मेरे वजूद हैं
मेरी पहचान हैं।
जब सारी दुनिया सोती है
अपनी अपनी दुनियाँ में
अपनी अपनी नींद में
तब ये शब्द ही
मुझे जगाते हैं
और
कराते हैं
अहसास
कि –
कुछ शब्द नादान हैं
एक दूसरे से अनजान हैं।
कोशिश करता हूँ
उन्हें जोड़ने
मन मस्तिष्क के शब्दकोश में
उन्हे बताने कि –
यही तो उनकी पहचान है।
ये शब्द
कभी – कभी
जुड़ जाते हैं
और
कभी कभी
हाथों से फिसल जाते हैं
और
चले जाते हैं
दूर
बहुत दूर।
झील के पार
नदी के पार
दूर
पहाड़ों पर
पहाड़ों पर बने
किलों पर
समुन्दर पर
और
कभी कभी
सात समुन्दर पार भी
सवार होकर
मेरे मन की उड़ान पर ।
शब्द तो
स्वतंत्र हैं।
उन्हें कोई भी
बाँध नहीं सकता।
किसी का
मन मस्तिष्क भी नहीं
और
किसी देश की
सीमा भी नहीं ।
जब कभी
होता हूँ अकेला
तब चुपचाप
ये ही शब्द
मुझे
सुनाते हैं
शान्त झील
और
पहाड़ी नदी के गीत
हरे – भरे
खेतों – मैदानों
की शान्ति
और
पहाड़ों
घने जंगलों में फैली
भयावहता की कहानियाँ।
श्मशान की भयावहता
और
ऐतिहासिक किलों में दफन
इतिहास।
इन सभी शब्दों का
अपना वजूद है
मेरे जेहन में
मेरे अपने शब्दकोश में ।
मेरे सभी शब्द
मेरे प्रिय हैं
मेरे अतिप्रिय हैं
कभी – कभी
राह चलते
मिल जाते हैं
कुछ कठोर शब्द!
जो विचलित कर देते हैं
तब
उन्हें करना पड़ता है – दरकिनार।
तभी
रच पाता हूँ
शेष शब्दों से
ऐसे ही एक कविता!
बेम्बर्ग 29 मई 2014
© हेमन्त बावनकर