श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एकअतिसुन्दर व्यंग्य रचना “अघोषित युद्ध”। इस समसामयिक एवं सार्थक व्यंग्य के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को नमन । इस सन्दर्भ में मैं अपनी दो पंक्तियाँ उद्धृत करना चाहूंगा-
अब ना किताबघर रहे ना किताबें ना ही उनको पढ़ने वाला कोई
सोशल साइट्स पर कॉपी पेस्ट कर सब ज्ञान बाँट रहे हैं मुझको ।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 8 ☆
☆ अघोषित युद्ध ☆
कहते हैं जहाँ एक ओर बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा होता है तो वहीं दूसरी ओर चिड़चिड़ापन चटनी के समान तीखा व चटपटा होता है, जो क्रोध को और लाग लपेट के साथ प्रस्तुत करता है । चिड़चिड़ा व्यक्ति क्या बोलता है ये समझ ही नहीं पाता, उसके दिमाग में बस बदला लेने की प्रवत्ति ही छायी रहती है । वो मारपीट, समान तोड़ना, पुरानी बातों को याद करना, अपना माथा पीटना ऐसी हरकतों पर उतारू हो जाता है । ऐसी दशा में चेहरे का हुलिया बिगड़ जाता है क्योंकि जब भी किसी को गुस्सा आता है तो चेहरा व आँखे लाल हो जाती है। मन ही मन बैर पाल लेने की परंपरा बहुत पुरानी है । महाभारत युद्ध भी इसी का परिणाम था। खैर अब तो इलेक्ट्रॉनिक युग है सो बात-बात पर ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सएप इन पर कोई भी पोस्ट आयी नहीं कि दो खेमे तैयार एक पक्ष में माहौल बनाता है तो दूसरा विपक्ष में । बस इसी के साथ अनर्गल बात चीत का दौर शुरू हो जाता है । अब गुस्से में व्यक्ति अधिक से अधिक क्या कर सकता है बस अनफॉलो, अनफ्रेंड, रिमूव इनके अतिरिक्त और कोई इजाजत यहाँ नहीं होती ।
यकीन मानिए कि ये सब करते हुए बहुत सुकून मिलता है दूसरे शब्दों में कहूँ तो राजा जैसी फीलिंग आती है । जिस तरह पुराने समय में बदला लेने के लिए युद्ध होते थे वैसे ही यहाँ पर भी अघोषित युद्ध आये दिन चलते रहते हैं जिसमें पिसता बेचारा असहाय वर्ग ही है क्योंकि वो इन पोस्ट्स को पढ़ता है और इसी आधार पर आपस में ज्ञान बाँटने लगता है ।
वीडियो, भड़काऊ पोस्ट, ज्ञान दर्शन की बातें ये सब खजाना खुला पड़ा है सोशल मीडिया पर ; बस यहाँ से वहाँ फॉरवर्ड करिए और दूसरों की नजरों में भले ही आप बैकवर्ड हो पर स्वयं की नजर में तो फॉरवर्ड घोषित हो ही जाते हैं । मजे की बात इन बातों का प्रभाव भी दूरगामी होता है ; मन ही मन खिचड़ी पकने लगती और हमारे क्रियाकलाप उसी तरह हो जाते हैं जो सामने वाला चाहता है । भटकाव के इस दौर में जो लोग साहित्य को दर्पण मान पुस्तक में डूब जाते हैं उनकी जीवन नैया तो संगम के पार उतर जाती है बाकी के लोगों को राम ही राखे ।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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