श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एकअतिसुन्दर व्यंग्य रचना “ऑन लाइन सम्बंधो का दौर।  इस समसामयिक एवं सार्थक व्यंग्य के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 9 ☆

☆ ऑन लाइन सम्बंधो का दौर

मनुष्य सामाजिक प्राणी है सो जैसे ही मौका मिला कालोनियों का निर्माण शुरू कर देता है । मजे की बात हर व्यक्ति ऐसी जगह बसाहट चाहता है जहाँ शांति हो । इसी शांति की खोज में न जाने कितने जंगल तबाह हो गये । जंगलों को उजाड़ कर अपना आशियाना बनाना प्राचीन काल से चला आ रहा है । पांडवों ने भी खांडव वन उजाड़ कर इंद्रप्रस्थ बनाया था । जिसका दर्द भगवान श्रीकृष्ण को आखिरी समय तक रहा ।

एकांत वास व सबसे दूर रहने की एक वज़ह और भी है । सबसे मिलने जुलने में स्वागत सत्कार करना पड़ता है । आज की तकनीकी ग्रस्त पीढ़ी के पास इतना समय कहाँ कि वो सम्बंधो को ढोते फिरे । आने- जाने में चाय – नाश्ता करवाओ ,फिर इधर – उधर की बातें सो फ़ायदा कम कायदा ही ज्यादा नजर आता है ।  अब तो यही बेहतर है कि ऑन लाइन सम्बंधो को निभाया जाये , बधाई संदेशों से लेकर सारे पकवान व उपहार सब के सिंबल मौजूद हैं बस इधर से उधर करते रहिए और त्योहारों की गहमा- गहमी से बचे रहिये ।

संस्कार और संस्कृति को बचाने की ऑन लाइन मुहिम तो जोर- शोर से चल रही है बस उसके मुखिया बनने की देर है । जिसके पास समय हो वो इस पद पर आसीन हो सकता है । मुखिया की बात से तुलसी दास जी द्वारा रचित ये दोहा याद आता है –

मुखिया मुह सो चाहिए …..खान – पान सो एक ।

पाले पोसे सकल अंग, तुलसी सहित विवेक ।।

अब सच्ची बात तो ये है कि ये पद उसी को मिल सकता है जिसका मुह  सबको एक समान जानकारी प्रदान करे ; बिना भेदभाव के । हाँ एक बात और है कि मुह देखी तो बिल्कुल न करे ; सामने कुछ और पीठ पीछे कुछ और । वो मन से ईमानदार हो , बुद्धिमान हो तभी तो सारे समाज को एक सूत्र में पिरोकर रख सकेगा ।

ऑन लाइन सम्बंधो की सबसे बड़ी खूबी  है कि –  ये पूरी दुनिया को मुट्ठी में कर सकते हैं । सबको एक साथ जानकारी फॉरवर्ड कर जागरूक बनाना इसका मुख्य लक्ष्य है । एक तरफ जहाँ लोग ये कह रहे हैं कि अब रिश्तों में वो गर्माहट नहीं बची जो पहले थी तो दूसरी ओर ऑन लाइन सम्बंध सभी रिश्तों को बखूबी निभा रहे हैं । इतनी आत्मीयता व उचित संबोधनों से बातचीत होती है कि इस मिठास के आगे तो शहद भी फीका पड़ जाता है ।  और सबसे बढ़िया बात कि इन मुलाकातों में कोई संक्रमण का डर भी नहीं होता । समय- समय पर जो बीमारियाँ हमको डराती रहतीं हैं वो भी इससे खुद डरकर भाग जाती हैं ; न दवा – दारू की झंझट, न कोई साइड इफ़ेक्ट  । सो अब तो हर त्योहार ऑन लाइन ही मनाइये आखिर परम्पराओं को हम लोग ही तो  बचायेंगे । एक दूसरे को शुभकामनाएँ, बधाई व शुभाशीष देते रहें लेते रहें ।

© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
संजीव

छाया की छाया तले, उगी व्यंग्य की पौध
जगवाणी संपन्न हो, शब्द-अर्थ हो,सौध