श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’
( श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू, हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है कृष्णा के दोहे । इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमती कृष्णा जी बधाई की पात्र हैं।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 25 ☆
☆ कृष्णा के दोहे ☆
चितवन
कान्हा से टकरा गई, वह अलबेली नार।
अधर पंखुरी से खिले, चितवन प्रीति – कटार।।
अनुवाद
बहु भाषाओं में हुआ, रामायण – अनुवाद
कभी अहिंदी क्षेत्र भी, करते नहीं विवाद।।
अनुबंध
अधर गुलाबी खिल उठे, साँस धौंकनी लाज।
अनुरागी अनुबंध की, पाती पढ़कर आज।।
चकोर
चाहत हुई चकोर – सी, चाँद तके दिन रैन
गीतों के गुंजार से, कंठ न पाता चैन।।
चाँदनी
रात अमावस जप रही, कृष्ण – कृष्ण अविराम।
पूरण मासी चाँदनी, भजती राधेश्याम।।
© श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि ‘
अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश