श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का  विचारणीय आलेख  “बिजली और राजनीति”।  राष्ट्रीय स्तर पर रेल, पोस्ट, दूरसंचार, इंटरनेट सेवाएं और टैक्स पर भी एक सामान दर है तो फिर  इस श्रेणी से बिजली अलग क्यों और उसपर राजनीति क्यों ?  श्री विवेक रंजन जी  को इस  सार्थक एवं विचारणीय आलेख के लिए बधाई। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 38 ☆ 

☆ बिजली और राजनीति ☆

 हमारे संविधान में बिजली केंद्र व राज्य दोनो की संयुक्त सूची में है, इसी वजह से बिजली पिछले कुछ दशको से  राजनीति का विषय बन चुकी है. जब संविधान बनाया गया था तब बिजली को विकास के लिये  ऊर्जा के रूप में आवश्यक माना गया था अतः उसे केंद्र व राज्यो के विषय के रूप में बिल्कुल ठीक रखा गया था. समय के साथ एक देश एक रेल, एक पोस्ट, एक दूरसंचार, एक इंटरनेट, अब एक टैक्स के कानसेप्ट तो आये किंतु बिजली से आम नागरिको के सीधे हित जुड़े होने के चलते वह राजनीति और सब्सिडी, के मकड़जाल में उलझती गई.

कुछ दशकों पहले बिजली का उत्पादन कम था, तब बिजली कटौती से जनता परेशान रहती थी, बिजली सप्लाई को लेकर  पक्ष विपक्ष के राजनीतीज्ञ आंदोलन करते थे. चुनावों के समय दूसरे राज्यों से बिजली खरीदकर विद्युत कटौती रोक दी जाती थी, बिजली वोट में तब्दील हो जाती थी. समय के साथ निजी क्षेत्र का बिजली उत्पादन में प्रवेश हुआ. बिजली खरीदी के करारो के जरिये  राजनीतिज्ञो को आर्थिक रूप से निजी कंपनियो ने उपकृत भी किया. दुष्परिणाम यह हुआ कि अब जब बिजली को संविधान संशोधन के जरिये एक देश एक बिजली की नीति के लिये केवल केंद्र का विषय बना दिया जाना चाहिये, तब कोई भी राजनैतिक दल इस सुधार हेतु तैयार नही होगा.  बिजली की दरें राज्य के विद्युत  नियामक आयोग तय करते हैं, और सब्सिडी के खेल से सरकारें वोट बना लेती हैं.  चिंता का विषय है कि बिजली ऐसी कमोडिटी बनी हुई है, जिसकी दरें मांग और आपूर्ति के इकानामिक्स के सिद्धांत से सर्वथा विपरीत तय किये जाते हैं. चुनावों के समय  बिजली को विकास का संसाधन मानकर बिजली सामाजिक मुद्दा बना दिया जाता है तो चुनाव जीतते ही बिजली कंपनियो को कमर्शियल आर्गनाईजेशन बता कर उसमें कार्यरत कर्मचारियो को सरकारो द्वारा सरे आम रेवेन्यू बढ़ाने के लिये प्रताड़ित किया जाने लगता है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल ही एक ट्वीट कर कहा कि “मुझे खुशी है कि सस्ती बिजली राष्ट्रीय राजनीति में बहस का मुद्दा बन चुका है। दिल्ली ने दिखा दिया कि निशुल्क या सस्ती बिजली उपलब्ध कराना संभव है। दिल्ली ने दिखा दिया कि इससे वोट भी मिल सकते हैं। 21वीं सदी के भारत में 24 घंटे सस्ती दर पर बिजली उपलब्ध होनी चाहिए।”

दिल्ली के चुनावों में हम सबने केजरीवाल सरकार द्वारा फ्री बिजली का प्रलोभन देकर जीतने का करिश्मा देखा ही है.

पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार के चुनाव आसन्न हैं.दिल्ली सरकार की तर्ज पर पश्चिम बंगाल की सरकार ने भी मुफ्त बिजली देने की घोषणा की है। अपने फैसले में ममता सरकार ने कहा है कि तीन महीने में 75 यूनिट बिजली की खपत करने वालों से बिल नहीं लिया जाएगा। दिल्ली की केजरीवाल सरकार लोगों को 200 यूनिट तक फ्री बिजली दे रही है।

झारखंड सरकार भी दिल्ली की तरह झारखंड में घरेलू उपयोग के लिए फ्री बिजली देने की तैयारी शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर ऊर्जा विभाग 100 यूनिट फ्री बिजली का प्रस्ताव तैयार कर रहा है। यह झारखंड मुक्ति मोर्चा की चुनावी घोषणा में शामिल है।

महाराष्ट्र सरकार द्वारा भी बिजली पर सब्सिडी देने संबंधी प्रस्ताव विचाराधीन है. म. प्र. सरकार में  भी निश्चित सीमा तक फ्री बिजली दी जा रही है. अन्य राज्यो की सरकारें भी कम ज्यादा सब्सिडी के प्रलोभन देकर जनता को दिग्भ्रमित कर रही हैं. केवल बिजली ही ऐसी कमोडिटी है जिसकी दरो में देश में क्षेत्र के अनुसार, उपयोग के प्रकार तथा खपत के अनुसार व्यापक अंतर परिलक्षित होता है. आज आवश्यक हो चला है कि एक देश एक बिजली की नीति बनाकर बिजली की दरो में सबके लिये समानता लाई जावे. क्या कारण है कि केंद्र की नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन, पावर ग्रिड, नेशनल हाईडल पावर कारपोरेशन, एटामिक पावर आदि संस्थान जहां नवरत्न कंपनियो में लाभ अर्जित करने वाले संस्थान हैं वहीं प्रायः राज्यो की सभी बिजली कंपनियां बड़े घाटे में हैं. इस घाटे  से इन संस्थानो को निकालने का एक ही तरीका है कि बिजली को लेकर हो रही राजनीति बंद हो.

 

विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर .

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

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MITHILESH SINGH

विवेक जी, सबसे पहले मै अपना परिचय देना चाहूंगा मैं मिथिलेश सिंह DGM – पावर प्लांट (एनर्जी ऑडिटर,बायलर ऑपरेशन इंजीनियर,NPTI इंजीनियर , बी इ -मैकेनिकल इंजीनियरिंग और डिप्लोमा इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग) २० वर्षो का बिजली उत्पादन में अनुभव & विगत १० वर्षो से बायलर ऑपरेशन इंजीनियरिंग की कोचिंग दे रहा हु आप का लेख मैंने पढ़ा आप के लेख में कई अच्छी बातें है मगर कुछ बातो से मई सहमत नहीं हु जिन बातो से मैं सहमत नहीं हु उनका उल्लेख करना चाहूंगा १। बिजली आज के दौर में एक अवश्य यानि जीवन की मूल भूत आवश्यकता है ऐसे में हर… Read more »

डॉ भावना शुक्ल

शानदार