(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक व्यंग्य “बे सिर पैर की”। श्री विवेक जी ने इस व्यंग्य का शीर्षक बे सिर पैर की रखा है किन्तु, इसमें सर भी है और पैर भी है। हाँ , ढूंढना तो आपको ही पड़ेगा। श्री विवेक जी की लेखनी को इस अतिसुन्दर व्यंग्य के लिए नमन । )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 44 ☆
☆ बे सिर पैर की ☆
बे सिर पैर की बातें मतलब फिजूल बातें, बेमतलब की, निरर्थक बातें. बे सिर पैर की बातें करना भी कोई सरल कार्य नहीं होता. अक्सर शराब के नशे में धुत वे लोग जो दीन दुनियां, घर वार भूल जाते हैं, और जिन्हें केवल बार याद रह जाता है, कुछ पैग लगाकर, बड़े सलीके से तार्किक बेसिर पैर की बातें करने में निपुण माने जाते हैं. उनके ग्रामोफोन की सुई जहां अटक जाती है, मजाल है कि नशा उतरते तक कोई उनसे कोई तरीके की बात कर सके. नेता जी लोगों में भी बे सिर पैर की बाते करने का यह गुण थोड़ा बहुत पाया ही जाता है. अपनी बे सिर पैर की बातों में उलझाकर वे आपसे अपना मतलब सिद्ध करवा ही लेते हैं. यूं कई कहानीकार भी बे सिर पैर का कथानक बुनने के महारथी होते हैं. टी वी सीरियल्स में सास बहू की ज्यादातर स्क्रिप्ट विज्ञापनों और टी आर पी के बीच इस चकाचौंध और योग्यता से दिखाई जाती हैं कि उस बे सिर पैर की कहानी को एपीसोड दर एपीसोड जितना चाहो उतना बढ़ाया जा सकता है. बे सिर पैर का थाट लेकर ही इन दिनो लोकप्रिय हास्य रियल्टी शो ऐसा मशहूर हो रहा है कि लोग वीक एण्ड की और कपिल की सारे हफ्ते प्रतीक्षा करते हैं.
लेकिन इन दिनो जिस एक बे सिर पैर के वायरस ने सारी दुनियां को कारागार में बदल कर रख दिया है वह है करोना. दुनियां भर में हर कोई अपने घर पर लाकडाउन में रहने को मजबूर है. इस बे सिर पैर के, बेजान, प्रोटीन की खाल में लपटे डी एन ए से सुपर पावर्स तक डरी हुई हैं, पर जिनके दिमागो में धर्मांधता के नशे का खुमार हो वे चाहे मरकज में हो, पाकिस्तान में हों या दुनियां के किसी कोने में हों उन्हें इस करोना से कोई डर नही लग रहा. जिन्हें मानव जीवन के इस संघर्ष काल में भी इकानामी का ग्रोथ रेट दिखता हो, ऐसे सुपर पावर्स के बड़े बड़े हुक्मरान भी इस बेसिर पैर के करोना से बिना डर इस समय को दुनियां में अपने प्रभुत्व जमाने के मौके के रूप में देख रहे हैं. मेरे जैसे जो सिरे से, दिमाग से सोचते समझते हैं वे अपने ही बायें हाथ से दाहिने हाथ में सामान लेते हुये डर रहे हैं, और साबुन से हाथ धो रहे हैं. हर व्हाटसएप ऐसे पढ़ रहे हैं,मानो उसमें ही करोना के अंत का ज्ञान छिपा है. आप भी ऐसा ही एक व्हाट्सेपी मैसेज पढ़िये.
मार्च की आखिरी तारीख को एक तांत्रिक एक होटल में गया और मैनेजर के पास जाकर बोला क्या रूम नंबर १३ खाली है?
मैनेजर ने उत्तर दिया हां, खाली है, आप वो रूम ले सकते हैं.तांत्रिक ने कमरा ले लिया और कमरे में जाते हुये मैनेजर से बोला मुझे एक चाकू, एक काले धागे की रील और एक पका हुआ संतरा कमरे में भिजवा दो. मैनेजर ने उत्तर दिया ठीक है, और कहा कि हां, मेरा कमरा आपके कमरे के ठीक सामने ही है,अगर आपको कोई दिक्कत हो तो आप मुझे आवाज दे सकते हैं. तांत्रिक बोला ठीक है,और वह कमरे में चला गया.आधी रात को तांत्रिक के कमरे से तेज चीखने चिल्लाने की और प्लेटो के टूटने की आवाज आने लगती है, इन आवाजों के कारण मैनेजर सो भी नही पाता और वो रात भर इस ख्याल से बैचेन रहता है कि आखिर उस कमरे में हो क्या रहा है? अगली सुबह जैसे ही मैनेजर तांत्रिक के कमरे में गया उसे पता चला कि तांत्रिक होटल से चला गया है और कमरे में सब कुछ ठीक है, टेबल पर चाकू रखा हुआ है, मैनेजर ने सोचा कि जो उसने रात में सुना कहीं उसका मात्र वहम तो नही था. बात कहते एक साल बीत गया..एक साल बाद..मार्च की आखिरी तारीख को वही तांत्रिक फिर से उसी होटल में आया और रूम नंबर १३ के बारे में पूछा ? मैनेजर:- हां, रूम नम्बर १३ खाली है आप उसे ले सकते हैं,तांत्रिक :- ठीक है, मुझे एक चाकू, एक काले धागे की रील और एक पका हुआ संतरा चाहिए होगा. मैनेजर:- जी, ठीक है.उस रात मैनेजर सोया नही, वो जानना चाहता था कि आखिर रात में उस कमरे में होता क्या है? ज्यादा रात नही हुई थी तभी वही आवाजें फिर से आनी चालू हो गई और मैनेजर तेजी से तांत्रिक के कमरे के पास गया, चूंकि उसका और तांत्रिक का कमरा आमने-सामने था, इस लिए वहाँ पहुचने में उसे ज्यादा समय नही लगा. लेकिन दरवाजा लॉक था, यहाँ तक कि मैनेजर की वो मास्टर चाबी जिससे हर रूम खुल जाता था, वो भी उस रूम १३ में काम नही कर रही थी.
आवाजो से मैनेजर का सिर फटा जा रहा था, आखिर दरवाजा खुलने के इंतजार में वो दरवाजे के पास ही सो गया.अगली सुबह जब मैनेजर उठा तो उसने देखा कि कमरा खुला पड़ा है लेकिन तांत्रिक वहां नही है. वो जल्दी से मेन गेट की तरफ भागा, लेकिन दरबान ने बताया कि उसके आने से चंद मिनट पहले ही तांत्रिक जा चुका था. मैनेजर कसमसा कर रह गया, उसने निश्चय कर लिया कि वो पता करके ही रहेगा कि आखिर ये तांत्रिक और रूम १३ का राज क्या है. मैनेजर हमेशा चौकस रहने लगा,जहां चाह वहां राह, आखिर एक दिन बाजार में मैनेजर को तांत्रिक दिख ही गया, वह भागता हुआ उसके पास पहुंचा. उसने तांत्रक से पूछा कि आखिर तुम रात को काले धागे, संतरे और चाकू से करते क्या हो? चीखने की आवाजें कहां से आती हैं ? बताओ.?तांत्रिक ने कहा मैं तुम्हे ये राज बता दूंगा लेकिन अगले साल और शर्त यह है कि तुम ये राज किसी और को नही बताओगे. मैनेजर मान गया. पर इस साल लॉक डाउन के कारण तांत्रिक आ ही नही सका. अब मैनेजर को अगले मार्च की आखिरी तारीख का इंतजार है. लगता है तब तक इस बे सिर पैर की कहानी के राज सुनने के लिए हम सबको सजग रहना होगा, सुरक्षित रहना होगा. परमात्मा करे कि हमारे वैज्ञानिक उससे बहुत पहले ही बे सिर पैर के इस करोना वायरस का अंत कर दें वैक्सीन बनाकर.
© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर .
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