डॉ. ऋचा शर्मा
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी एक समसामयिक , भावुक एवं मार्मिक लघुकथा “ इंसानियत ”। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस हृदयस्पर्शी लघुकथा को सहजता से रचने के लिए सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 30☆
☆ लघुकथा – इंसानियत ☆
प्लीज अंकल, दो महीने से मुझे सैलेरी नहीं मिल रही है जैसे ही मिलेगी मैं आपको किराया दे दूंगी .
मुझे कुछ नहीं पता, रहना हो तो किराया दो, नहीं तो मकान खाली कर दो.
इस समय मुझे यहीं रहने दीजिए. आप ही बताइए ना मैं कहाँ जाऊँ इस समय ? .
मुझे कुछ नहीं पता – बडे रूखेपन से मकान मालिक ने जबाब दिया
अंकल ! आपको पता है ना कोरोना के कारण देश का क्या हाल है. मुझे मकान कहाँ मिलेगा किराए पर इस समय – उसने बडी मायूसी से कहा
मुझे इससे कोई मतलब नहीं, मैंने पहले ही कहा था कि किराया समय पर देना होगा.
रिया ने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन मकानमालिक ने एक ना सुनी, साफ कह दिया कि किराया दो या मकान खाली करो. रिया ने परेशान होकर अपने लिए मकान देखना शुरू किया . दोस्तों के परिचय से मकान मिल तो गया अब समस्या यह थी कि नए घर में सामान कैसे पहुँचाया जाए ? लॉकडाउन के कारण कोई आ नहीं सकता था, बालकनी में खडी सोच रही थी कि सडक पर कुछ लडकों को जाते देखा, सबके कंधों पर बैग लदे थे, हाथों में भी सामान था. सबके चेहरों पर बडी थकान दिख रही थी. रिया ने बडे सकुचाते हुए उन्हें अपनी परेशानी बताई और पूछा – मुझे नए घर में सामान शिफ्ट करना है आप लोग मेरी मदद कर देंगे क्या ? मेरे पास पैसे भी थोडे ही हैं.
उन्होंने एक दूसरे की तरफ देखा. अरे दीदी काहे नहीं करेंगे मदद – मुस्कुराता हुआ एक लडका बोला, हमें आदत है मेहनत – मजूरी करने की. सबने अपना सामान एक किनारे रखा और लग गये रिया की मदद करने.सामान पहुँचाने के बाद रिया ने उन्हें पैसे देने चाहे तो एक मजदूर हाथ जोडकर बोला – दीदी पैसे की बात ना करना, हम समझते हैं सबके हालात, देखो ना हम भी तो मारे – मारे घूम रहे हैं. बस इतनी दुआ करना कि हम अपने घर पहुँच जाएं अपनों के पास — उसकी आँखें भर आईं.
रिया को इंसान में भगवान के दर्शन हो गये थे.
© डॉ. ऋचा शर्मा
अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.
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बहुत सुखद और मानवीय रिश्तों की कहानी है । समाज में मकान मालिक जैसे स्वार्थी , लोभी भी हैं तो राह चलते मज़दूरों जैसे सही अर्थों में मानव देव भी मिलते हैं। उत्तम लेखन जी
Aaj ke sandharb ko bayan karti ek sateek laghukatha.