डॉ. ऋचा शर्मा
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी एक भयावह सामाजिक विडम्बना को उल्लेखित करती लघुकथा “भेडिए”। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को जीवन के कटु सत्य को दर्शाती लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 35 ☆
☆ लघुकथा – भेडिए ☆
वह सिर झुकाए बैठी थी, निर्विकार. मैं उससे पहले भी मिली थी पर इतनी लाचार वह कभी नहीं लगी. लंबी कद- काठी और मजबूत शरीरवाली वह दूसरी औरतों की तुलना में मुझे सशक्त लगी थी. हाँ लगी तो थी — ?
उससे सवाल पूछे जा रहे थे एक के बाद एक —
क्या हुआ था ? कौन था वह ? चेहरा तो देखा होगा ?
हर सवाल पर उसका एक ही जवाब था – घना अँधेरा था, कुछ नी देकखा मैंने, पता नी कौन था.
वह क्या बोलती और कैसे ? दरवाजे के पीछे से कई जोडी आँखें उसे घूर रही थीं जिनमें धमकियां थीं, हिदायतें भी, घर की बात घर में ही रहने देने की.
ससुर ने साफ कह दिया था- जबान खोली तो देख ले, फिर घर में जगह ना मिलेगी.
किसी ने समाज सेवी संस्था को खबर कर दी थी, दो महिलाएं आई थीं जाँच पडताल करने के लिए, उनके ढेरों सवाल थे लेकिन इसे मानों कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था. वह यही सोच रही थी कि घरवालों ने निकाल दिया तो नन्हीं बच्ची को लेकर जाएगी कहाँ ?
एक महिला बोली- आप निडर होकर बोलिए, हम सब आपके साथ हैं. हमारे देश में निराश्रित स्त्रियों और लडकियों के रहने के लिए शेल्टर होम हैं, आपको कोई परेशानी नहीं होगी. शेल्टर होम का नाम सुनते ही वह मानों सोते से जगी हो, हाथ जोडकर दृढता से बोली – ना – ना जी मुझे कोई परेशानी ना है, मुझ पर कोई अत्याचार ना हुआ. पति के जाने के बाद इन सबने ही मुझे संभाला है. अब आप जाओ यहाँ से.
उसने सुना था शेल्टर होम में भी भेडिए ही बसते हैं.
© डॉ. ऋचा शर्मा
अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.
122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005
e-mail – [email protected] मोबाईल – 09370288414.
मार्मिक रचना
बेहद मार्मिक
सच्चाई को दर्शाती है।